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श्राद्धविधि प्रकरणम् विद्यारंभ, दीक्षा, शस्त्राभ्यास, विवाद, राजा का दर्शन, गीत आदि, मंत्र यंत्रादिक का साधन इतने कार्यों में सूर्यनाड़ी शुभ है। दाहिनी अथवा बायी जिस नासिका में प्राणवायु एक सरीखा चलता हो उस तरफ का पैर आगे रखकर अपने घर में से निकलना। सुख, लाभ और जय इसके चाहनेवाले पुरुषों को अपने देनदार, शत्रु, चोर, विवाद करनेवाला इत्यादिक को अपनी शून्य (श्वासोश्वास रहित) नासिका के तरफ रखना। कार्यसिद्धि के इच्छुक पुरुषों को स्वजन, अपना स्वामी, गुरु तथा अन्य अपने हितचिन्तक इन सर्व लोगों को अपनी चलती हुई नासिका के तरफ रखना। पुरुष को बिछौने पर से उठते समय जो नासिका पवन के प्रवेश से परिपूर्ण हो उस नासिका के तरफ का पैर प्रथम भूमि पर रखना। जाप कैसे करें? :
श्रावक ने इस विधि से निद्रा का त्याग करके परम मंगल के निमित्त आदरपूर्वक नवकारमंत्र का अव्यक्तवर्ण सुनने में न आवे इस प्रकार स्मरण करना। कहा है कि
परमिद्विचिंतणं सिज्जागरण कायव्वं।
सुत्ताऽविणयपवित्ती निवारिआ होइ एवं तु ।।१।। बिछौने पर बैठे हुए पुरुष को पंचपरमेष्ठि का चिंतवन मन में ही करना। ऐसा करने से परम आराध्य श्रुतज्ञान के सम्बन्ध में अविनय की प्रवृत्ति रुकती है। दूसरे आचार्य तो ऐसी कोई भी अवस्था नहीं कि, जिसमें नवकार मंत्र गिनने का अधिकार न हो ऐसा मानकर 'नवकार मंत्र को सभी अवस्था में गिनना' ऐसा कहते हैं। ये दोनों मत प्रथम पंचाशक की वृत्ति में कहे हैं। श्राद्धदिनकृत्य में तो ऐसा कहा है कि,शय्या का स्थान छोड़कर नीचे भूमिपर बैठना और भावबन्धु तथा जगत् के नाथ ऐसे परमेष्ठि का वर्णन जिसमें है ऐसे नवकार को गिनना। यतिदिनचर्या में तो इस प्रकार कहा है कि, रात्रि के पिछले प्रहर में बाल, वृद्ध इत्यादि सब लोग जागते हैं, इसलिए उस समय मनुष्य प्रथम सात आठ बार नवकार मंत्र कहते हैं। नवकार गिनने की यह विधि है।
निद्रा लेकर उठा हुआ पुरुष मन में नवकार गिनता हुआ शय्या से उठकर पवित्र भूमि पर खड़ा रहे अथवा पद्मासनादि सुखासन से बैठे। पूर्वदिशा में, उत्तर दिशा में अथवाजहां जिन प्रतिमा हो उस दिशा की ओर मुख करे, और चित्त की एकाग्रता आदि होने के निमित्त कमलबंध से अथवा हस्तजाप से नवकार मंत्र गिने। उसमें कल्पित अष्टदलकमल की कर्णिका ऊपर प्रथम पद स्थापन करना, पूर्व, दक्षिण, पश्चिम, तथा उत्तर दिशा के दल पर अनुक्रम से दूसरा, तीसरा, चौथा और पांचवां पद स्थापन करना, और अग्नि, नैऋत्य, वायव्य और ईशान इन चार उपदिशाओं में शेष चार पद अनुक्रम से स्थापन करना। श्री हेमचन्द्रसूरिजी ने आठवें प्रकाश में कहा है कि,"आठ पंखुड़ियों के श्वेतकमल की कर्णिका में चित्त स्थिर रखकर वहां पवित्र सात अक्षर के मंत्र—(नमो अरिहंताणं) का चिन्तन करना। (पूर्वादि) चारदिशा की चार पंखड़ियों में क्रमशः सिद्धादि चार पद का और उपदिशाओं में शेष चार पद का चिन्तन करना। मन,