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श्राद्धविधि प्रकरणम्
247 अवसर पर कहे हुए उचित वचन से बहुत गुण होता है। जैसे अंबड मंत्री ने मल्लिकार्जुन को जीतकर चौदह करोड़ मूल्य के मोतियों से भरे हुए छः मूड़े (माप का पात्रविशेष), चौदह-चौदह भार वजन धन से भरे हुए बत्तीस कुंभ, श्रृंगार के एक करोड़ रत्न जड़ित वस्त्र तथा विषनाशक शुक्ति (सीप) आदि वस्तुएं कुमारपाल के भंडार में भरी। जिससे उस कुमारपाल ने प्रसन्न हो अंबड मंत्री को 'राजपितामह' पदवी, एक करोड़ द्रव्य, चौबीस उत्तम अश्व इत्यादि ऋद्धि प्रदान की। तब मंत्री ने अपने घर तक पहुंचने के पूर्व ही मार्ग में याचकजनों कों वह सम्पूर्ण ऋद्धि बांट दी। इस बात की किसीने जाकर राजा के पास चुगली खाई। तो मन में निकृष्ट अध्यवसाय आने से कुमारपाल राजा ने क्रोध से अंबड मंत्री को कहा कि, 'क्या तू मेरे से भी अधिक दान देता है?' उसने उत्तर दिया-'महाराज! आपके पिता दस गांवों के स्वामी थे, और आप तो अट्ठारह देश के स्वामी हो, इसमें क्या आपकी ओर से पिताजी की अविनय हुई मानी जा सकती है?' इत्यादि उचित वचनों से राजा ने प्रसन्न हो उसे 'राज्यपुत्र' की पदवी व पूर्व की अपेक्षा दुगुनी ऋद्धि दी। हमने भी ग्रंथान्तर में कहा है कि, दान देते, गमन करते, सोते, बैठते, भोजन पान करते, बोलते तथा अन्य समस्त स्थानों में उचित वचन का बड़ा रसमय अवसर होता है। इसलिए अवसर के ज्ञाता पुरुष सब जगह उचित आचरण करते हैं। कहा है कि
औचित्यमेकमेकत्र, गुणानां कोटिरेकतः। विषायते गुणग्राम, औचित्यपरिवर्जितः ॥१॥ एक तरफ तो एक उचित आचरण और दूसरी ओर अन्य करोड़ों गुण हैं। एक उचित आचरण न हो तो शेष सर्वगुणों का समूह विष के समान है। इसलिए पुरुष को समस्त अनुचित आचरणों को त्याग देना चाहिए। इसी प्रकार जिन आचरणों से अपनी मूर्ख में गिनती होती है, उन सब का अनुचित आचरणों में समावेश होता है। उन सबका लौकिक शास्त्र में वर्णन किया है, तदनुसार उपकार का कारण होने से यहां भी लिखते हैं.. 'राजा! सो मूर्ख कोन से? सो सुन, और उन मूर्खता के कारणों को त्याग। ऐसा करने से तू इस जगत् में निर्दोष रत्न की तरह शोभा पायेगा।
१सामर्थ्य होने पर भी उद्यम न करे, २ पंडितों की सभा में अपनी प्रशंसा करे, ३ वेश्या के वचन पर विश्वास रखे, ४ दंभ तथा आंडबर का भरोसा करे, ५ जूआ, कीमिया आदि से धन प्राप्त करने की आशा रखे, ६ खेती आदि लाभ के साधनों से लाभ होगा कि नहीं? ऐसी शंका करे,७ बुद्धि न होने पर भी उच्च कार्य करने को उद्यत हो, ८ वणिक् होकर एकान्तवास की रुचि रखे, ९ कर्ज करके घरबार आदि खरीदे,१० वृद्धावस्था में कन्या से विवाह करे, ११ गुरु के पास अनिश्चितग्रंथ की व्याख्या करे, १२ प्रकट बात को छिपाने का प्रयत्न करे, १३ चंचल स्त्री का पति होकर ईर्ष्या रखे, १४ प्रबल शत्रु के होते हुए मन में उसकी शंका न रखे, १५ धन देने के पश्चात् पश्चात्ताप करे,