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श्राद्धविधि प्रकरणम्
369 आदि धर्मिष्ठ लोगों ने भी नवीन जिनमंदिर की अपेक्षा जीर्णोद्धार ही अधिक करवाये। जिनकी संख्या आदि का वर्णन पूर्व में हो गया है।
जिनमंदिर तैयार हो जाने के बाद विलम्ब न करके प्रतिमा स्थापन करना। श्रीहरिभद्रसूरिजी ने कहा है कि, बुद्धिशाली मनुष्य को जिनमंदिर में जिनबिंब की शीघ्र प्रतिष्ठा करानी चाहिए। कारण कि, ऐसा करने से अधिष्ठायक देवता तुरन्त वहां आ बसते हैं और उस मंदिर की भविष्य में वृद्धि होती ही जाती है। मंदिर में तांबे की कुंडिया, कलश, ओरसिया, दीपक आदि सर्व प्रकार की सामग्री भी देना। तथा शक्त्यानुसार मंदिर का भंडार स्थापित करे उसमें रोकड़ द्रव्य, तथा बाग बगीचे,वाड़ी आदि देना। राजा आदि जो मंदिर बनवानेवाले हों तो उनको तो भंडार में बहुत द्रव्य, तथा ग्राम, गोकुल आदि देना चाहिए। जैसे कि मालवदेश के जाकुड़ी प्रधान ने पूर्व में गिरनार पर्वत पर काष्ठमय चैत्य के स्थान में पाषाणमय जिनमंदिर बंधाना शुरू किया। और दुर्भाग्यवश उसका स्वर्गवास हो गया। पश्चात् एकसो पैंतीस वर्ष के अनन्तर सिद्धराज जयसिंह के दंडाधिपति सज्जन में तीन वर्ष में सौराष्ट्र देश की जो सत्तावीस लाख द्रम्म उपज आती थी, वह खर्चकर उक्त जिनप्रासाद पूर्ण कराया। सिद्धराज जयसिंह ने सज्जन से जब उक्त द्रव्य मांगा, तब उसने कहा कि, 'महाराज! गिरनार पर्वत पर उस द्रव्य का निधि रखा है।' पश्चात् सिद्धराज वहां आया और नवीन सुन्दर जिनमंदिर देख हर्षित हो बोला कि, 'यह मंदिर किसने बनवाया? सज्जन ने कहा, 'महाराज साहेब ने बनवाया।' यह सुन सिद्धराज को बड़ा आश्चर्य हुआ। तदनन्तर सज्जन ने यथार्थ बात कहकर विनती की कि, 'ये सर्व महाजन आपका द्रव्य देते हैं, सो लीजिए अथवा जिनमंदिर बनवाने का पुण्य लीजिए,जैसी आपकी इच्छा' विवेकी सिद्धराज ने पुण्य ही ग्रहण किया, और उक्त नेमिनाथजी के मंदिर के खाते पूजा के निमित्त बारह ग्राम दिये। वैसे ही जीवन्तस्वामी की प्रतिमा का मंदिर प्रभावती रानी ने बनवाया। पश्चात् क्रमशः चंडप्रद्योत राजा ने उस प्रतिमा की पूजा के लिए बारह हजार ग्राम दिये। यथाजीवंतस्वामी की प्रतिमा : ___चंपानगरी में एक स्त्रीलंपट कुमारनंदी नामक स्वर्णकार रहता था। उसने पांच पांचसो सुवर्णमुद्राएं देकर पांचसो कन्याओं के साथ विवाह किया। वह उनके साथ एक स्तंभवाले प्रासाद में क्रीड़ा किया करता था। एक समय पंचशैलद्वीप निवासी हासा व प्रहासा नामक दो व्यंतरियों ने अपने पति विद्युन्माली का च्यवन होने पर, वहां आ अपना रूप बता कुमारनंदी को मोहित किया। वह जब भोग की प्रार्थना करने लगा, तब 'पंचशैलद्वीप में आना' यह कहकर वे दोनों चली गयीं। पश्चात् कुमारनंदी ने राजा को सुवर्ण देकर पड़ह बजवाया (ढिंढोरा पिटवाया) कि, जो पुरुष मुझे पंचशैलद्वीप में ले जाय, उसे मैं एक करोड़ द्रव्य दूं।' तदनुसार एक वृद्ध नियमिक (नाविक) करोड़ द्रव्य ले अपने पुत्रों को देकर, कुमारनंदी को एक नौका में बिठाकर बहुत दूर समुद्र में ले