Book Title: Shraddhvidhi Prakaranam Bhashantar
Author(s): Jayanandvijay
Publisher: Jayanandvijay

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Page 383
________________ 372 श्राद्धविधि प्रकरणम् वन्दन कराया। अनन्तर वह गान्धार श्रावक वहां बीमार हो गया, कुब्जा ने उस की अच्छी प्रकार शुश्रूषा की। अपना आयुष्य स्वल्प रहा जानकर उस श्रावक ने शेष सर्वगुटिकाएं कुब्जा को देकर दीक्षा ली। कुब्जा एक गुटिका भक्षण करने से अनुपम सुन्दरी हो गयी। जिससे उसका नाम 'सुवर्णगुलिका' प्रसिद्ध हो गया। दूसरी गोली भक्षणकर उसने चिन्तन किया कि, 'चौदह मुकुटधारी राजाओं से सेवित चंडप्रद्योत राजा मेरा पति हो। अर्थात् उदायन राजा तो मेरे पिता समान है और दूसरे राजा तो उदायन के सेवक हैं।' तदनंतर देवता के वचन से राजा चंडप्रद्योत ने सुवर्णगुलिका के पास दूत भेजा, परन्तु सुवर्णगुलिका ने चंडप्रद्योत को बुलवाया, उससे वह अनिलवेग हाथी पर बैठकर आया। सुवर्णगुलिका ने कहा कि, 'यह प्रतिमा लिये बिना मैं वहां नहीं आ सकती। इसलिए इसीके समान दूसरी प्रतिमा बनवाकर यहां स्थापन कर, ताकि यह प्रतिमा ली जा सके।' चंडप्रद्योत ने उज्जयिनी को जाकर दूसरी प्रतिमा तैयार करायी, औरकपिलनामककेवलीके हाथ से उसकी प्रतिष्ठा कराकर उसेले पुनः वीतभयपट्टण आया। नयी प्रतिमा वहां स्थापनकर प्राचीन प्रतिमा तथा दासी सुवर्णगुलिका को साथ ले वह चुपचाप रात्रि में वापस घर आया। पश्चात् सुवर्णगुलिका और चंडप्रद्योत दोनों विषयासक्त हो गये, जिससे उन्होंने उक्त प्रतिमा विदिशापुरी निवासी भायल स्वामी श्रावक को पूजा करने के लिए दे दी। एक समय कंबल-शंबल नागकुमार उस प्रतिमा की पूजा करने को आये। और पाताल में रही हुई जिनप्रतिमा को वन्दन करने के इच्छुक भायलस्वामी को जलमार्ग द्वारा पाताल में ले गये। उस समय भायल प्रतिमा की पूजा कर रहा था, परन्तु जाने की उत्सुकता से आधी ही पूजा हो पायी, पाताल में जिनभक्ति से प्रसन्न हुए नागकुमारको भायल ने कहा कि, 'ऐसा करो कि, जिससे मेरे नाम की प्रसिद्धि हो।' नागेन्द्र ने कहाऐसा ही होगा। चंडप्रद्योत राजा तेरे नाम का अनुसरण करके विदिशानगरी का नाम 'देवकीयपुर' रखेगा। परन्तु तू आधी पूजा करके यहां आया है जिससे भविष्यकाल में वह प्रतिमा अपना स्वरूप गुप्त ही रखेगी और मिथ्यादृष्टि लोग उसकी पूजा करेंगे। 'यह आदित्य भायल स्वामी हैं। यह कह कर अन्यदर्शनी लोग उक्त प्रतिमा की बाहर स्थापना करेंगे। विषाद न करना, दुष्षमकाल के प्रभाव से ऐसा होगा। भायल, नागेन्द्र का यह वचन सुन जैसा गया था वैसा ही वापिस आया। इधर वीतभयपट्टण में प्रातःकाल होते ही प्रतिमा की माला सूखी हुई, दासी भी नहीं तथा हाथी के मद का स्त्राव हुआ देखकर लोगों ने निर्णय किया कि, चंडप्रद्योत राजा यहां आया था। पश्चात् सोलह देश व तीनसो त्रैसठपुर के स्वामी उदायन राजा ने महासेना आदि दश मुकुटधारी राजाओं को साथ ले चढ़ाई की। मार्ग में ग्रीष्म ऋतु के कारण जल न मिलने से राजा ने प्रभावती के जीव देवता का स्मरण किया। उसने शीघ्र ही आकर वहां जल से परिपूर्ण तीन तालाब प्रकट किये। अनुक्रम से संग्राम का

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