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श्राद्धविधि प्रकरणम्
मिथ्या हो ॥ १४ ॥
विधिकौमुदीतिनाम्यां वृत्तावस्यां विलोकितैर्वर्णैः ।
श्लोकाः सहस्रषट्कं, सप्तशती चैकषष्ट्यधिकाः ।।१५।।
अर्थ ः विधिकौमुदी नामक इस वृत्ति में अक्षराक्षर की संख्या से इस ग्रन्थ की श्लोक संख्या ६७६१ होती है ।। १५ ।।
श्राद्धहितार्थं विहिता, श्राद्धविधिप्रकरणस्थसूत्रयुता ।
वृत्तिरियं चिरसमयं जयताज्जयदायिनी कृतिनाम् ॥ १६ ॥ ॥ इति प्रशस्तिः ॥
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अर्थः
श्राद्धविधि नामक मूलग्रन्थ सहित जिसकी यह वृत्ति मैंने श्रावकों के हितार्थ रची, सो (वृत्ति) कुशलपुरुषों को जय देनेवाली होकर चिरकाल विजयी हो ॥१६॥
हे आत्मन्!
शुद्ध श्रावक बनकर,
१. कर्म राजा के परिवार का ज्ञान प्राप्तकर,
२. जीवादि नव तत्त्वों का ज्ञाता बनकर,
३. पंच महाव्रतों का पालनहार बनने हेतु संसार के भयावह स्वरूप को सद्गुरु भगवंतों से पुनः पुनः समझकर,
४. चारों गति में भ्रमण के अपार दुःख को नजर समक्ष लाकर, शुद्ध संयमी श्रमण बनने का प्रयत्न कर।
यही शुभेच्छा ।
- जयानंद