Book Title: Shraddhvidhi Prakaranam Bhashantar
Author(s): Jayanandvijay
Publisher: Jayanandvijay

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Page 379
________________ 368 श्राद्धविधि प्रकरणम् नहीं, तथा जिनमंदिर बनवाने से अनेक प्रकार की प्रतिमास्थापन, पूजन, संघसमागम, धर्मदेशनाकरण, समकित, व्रत आदि का अंगीकार, शासन की प्रभावना, अनुमोदना इत्यादिक अनंतपुण्य की प्राप्ति के कारण होने से उससे उत्तम परिणाम उत्पन्न होते हैं। कहा है कि सूत्रोक्त विधि का ज्ञाता पुरुष यतनापूर्वक प्रवर्ते, और जो कदाचित् उसमें कोई विराधना हो जाय, तो भी अध्यवसाय की शुद्धि होने से, उस विराधना से निर्जरा हो ही जाती है। द्रव्यस्तव आदि पर कुए का दृष्टांत ऊपर कहा जा चुका है। - जीर्णोद्धार करने के कार्य में भी पूर्ण उद्यम करना चाहिए। कहा है कि जितना पुण्य नवीन जिनमंदिर बनवाने में है, उससे आठ गुणा पुण्य जीर्णोद्धार कराने एवं करवाने में है। जीर्ण जिनमंदिर साफ कराने में जितना पुण्य है, उतना नवीन बनवाने में नहीं। कारण कि, नया मंदिर बनवाने में अनेक जीवों की विराधना तथा 'मेरा मंदिर' ऐसी प्रख्याति भी है; इसलिए उसमें जीर्णोद्धार के बराबर पुण्य नहीं। इसी प्रकार कहा है कि जिनकल्पी साधु भी राजा, प्रधान, श्रेष्ठी तथा कौटुम्बिक आदि को उपदेश करके जीर्ण जिनमंदिर साफ करवावे। जो पुरुष जीर्ण हुए जिनमंदिरों का भक्ति से जीर्णोद्धार कराते हैं, वे भयंकर संसारसमुद्र में पड़े हुए अपनी आत्मा का उद्धार करते हैं। यथा शत्रुजय का जीर्णोद्धार करने का पिता ने अभिग्रह सहित निर्धारित किया था, जिससे मंत्री वाग्भट्ट ने वह काम शुरू करवाया, तब बड़े-बड़े श्रेष्ठी लोगों को अपने अपने पास का द्रव्य भी उस कार्य में दिया। छः द्रम्म की पंजीवाला भीम नामक एक घी बेचनेवाला था, जब टीप फिरती हुई उसके पास आयी, तब उसने घी बेचकर की हुई पूंजी सहित सर्व द्रव्य दे दिया। जिससे उसका नाम सबके ऊपर लिखा गया, और उसे सुवर्णनिधिका लाभ हुआ। इत्यादि वार्ता प्रसिद्ध है। पश्चात काष्टमय चैत्य के स्थान में शिलामय मंदिर तैयार होने की बधाई देनेवाले को मन्त्री ने सोने की बत्तीस जीमें बक्षिस दी। तदुपरांत उक्त जिनमंदिर विद्युत्पात से भूमिशायी हो गया, यह बात कहनेवालेको मन्त्री ने सुवर्ण की चौसठ जी. दी। उसका यह कारण था कि, मन्त्री ने मन में यह विचार किया कि, 'मैं जीवित रहते दूसरा उद्धार करने को समर्थ हुआ हूं।' दूसरे जीर्णोद्धार में दो करोड़, सत्तानवे हजार द्रव्य खर्च हुआ। पूजा के लिए चौबीस ग्राम और चौबीस बगीचे दिये। वाग्भट्ट मन्त्री के भाई आंबड मन्त्री ने भडौंच में दुष्टव्यंतरी के उपद्रव को टालनेवाले श्रीहेमचन्द्रसूरि की सहायता से अट्ठारह हाथ ऊंचे शकुनिका विहार नामक प्रासाद का जीर्णोद्धार कराया। मल्लिकार्जुन राजा के भंडार सम्बन्धी बत्तीस धड़ी सुवर्ण का बनाया हुआ कलश शकुनिका विहार के ऊपर चढ़ाया। तथा सुवर्ण दंड ध्वजा आदि दी। और मंगलदीप के समय पर बत्तीस लाख द्रम्म याचकजनों को दिये। प्रथम जीर्णोद्धार करके पश्चात् ही नवीन जिनमंदिर बनवाना उचित है। इसीलिए संप्रति राजा ने भी प्रथम नव्वासी हजार जीर्णोद्धार करवाये, और नवीन जिनमंदिर तो केवल छत्तीस हजार बनवाये। इसी प्रकार कुमारपाल, वस्तुपाल

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