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श्राद्धविधि प्रकरणम्
कोई विशेष रोगादि कारण हो तो दुविहार दिवसचरिम पच्चक्खाण करना चाहिए। यह पच्चक्खाण मुख्यतः तो दिन रहते हुए ही करना चाहिए। परन्तु उस समय न ले सके तो सूर्यास्त के बाद भी ले तो भी चल सकता है।
शंका: दिवसचरिम पच्चक्खाण निष्फल है। कारण कि, उसका एकाशन आदि पच्चक्खाण में समावेश हो जाता है।
समाधान: ऐसा नहीं, एकाशन आदि पच्चक्खाण के आठ आगार हैं, और दिवसचरिम के चार आगार हैं। इसलिए आगार का संक्षेप यही दिवसचरिम में विशेष हैं जिससे वह सफल है, और वह दिन के अंतिम भाग में करने का है, तथा रात्रिभोजन पच्चक्खाण का स्मरण करानेवाला है, इसलिए रात्रिभोजन पच्चक्खाणवाले को भी वह फलदायी है। ऐसा आवश्यक लघुवृत्ति में कहा है। यह पच्चक्खाण सुखसाध्य तथा बहुत फलदायक है। इस पर एक दृष्टांत कहते हैं कि—
एडकाक्ष की कथा :
दशार्णनगर में एक श्राविका संध्यासमय (दो घड़ी दिन रहने के पूर्व ) भोजन करके प्रतिदिन दिवसचरिम प्रत्याख्यान ले लेती थी। उसका पति मिथ्यादृष्टि था। 'संध्या को भोजन करने के बाद रात्रि को कुछ खाती हीं नहीं है। इसलिए यह (दिवसचरिम) बड़ा पच्चक्खाण करती है।' इस प्रकार उसका पति उक्त श्राविका की नित्य हंसी किया करता था। एक समय श्राविका उसके स्वभाव को जानती थी इसलिए निषेध करने पर भी उसने भी हठ से दिवसचरिम प्रत्याख्यान किया। रात्रि में सम्यग्दृष्टि देवी परीक्षा करने तथा शिक्षा देने के लिए उसकी बहन का रूपकर उसे घेवर (मिठाई विशेष) आदि देने लगी। श्राविका ने बहुत रोका, तो भी जीभ की लोलुपता से वह भक्षण करने लगा। इतने में देवी ने उसके मस्तक पर एक ऐसा प्रहार किया कि जिससे उसकी आंखें बाहर निकल कर भूमि पर गिर पड़ीं। 'मेरा अपयश होगा।' यह विचारकर श्राविका ने काउस्सग किया। तब उसके कहने से देवी ने किसीके मारे हुए एक बकरे की आंखें लाकर उस पुरुष को लगायी। जिससे उसका 'एडकाक्ष' नाम पड़ा। इस तरह प्रत्यक्ष विश्वास हो जाने से वह श्रावक हो गया व उसको देखकर बहुत से लोग भी श्रावक हो गये। कौतुकवश बहुत से लोग उसे देखने को आने लगे, जिससे उस नगर का भी नाम 'एडकाक्ष' पड़ गया... इत्यादि ।
पश्चात् संध्या समय अर्थात् अंतिम दो घड़ी दिन रहे तब सूर्यबिंब आधा अस्त होने के पूर्व पुनः यथाविधि संध्या समय की जिनपूजा करनी ।
इति श्रीरत्नशेखरसूरिविरचित
श्राद्धविधिकौमुदी की हिन्दीभाषा का दिनकृत्यप्रकाशनामक
प्रथमः प्रकाशः संपूर्णः
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