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श्राद्धविधि प्रकरणम् जा चउथं तो आयं-बिलाइ जा पोरिसी नमो वा ।।५।। अर्थः मासखमण में तेरह कम करे वहां तक तथा सोलह उपवास (चोत्तीस
भक्त) से लेकर एक एक उपवास (दो दो भक्त) कम करते चोथ भक्त (एक उपवास) तक तपस्या करने की भी मेरे में शक्ति नहीं ऐसे आंबिल आदि, पोरिसी तथा नवकारसी तक चिंतन करना ।।२५।। जं सक्कइ तं हिअए, धरेत्तु पारेत्तु पेहए पोत्ति।
दाउं वंदणमसढो, तं चिअ पच्चक्खए विहिणा ।।२६।। अर्थः उपरोक्त तपस्या में जो तपस्या करने की शक्ति हो वह हृदय में निश्चित
करना और काउस्सग्ग पार, मुंहपत्ति पडिलेहण करना। पश्चात् सरलभाव से वंदना देकर जो तपस्या मन में धारी हो उसका यथाविधि पच्चक्खाण लेना ॥२६॥ इच्छामो अणुसहिति भणिअ उवविसिअ पढ़इ तिण्णि थुई।
मिठसद्देणं सक्क-त्थयाइ तो चेइए वंदे ॥२७॥ अर्थः पश्चात् 'इच्छामो अणुसडिं' कह नीचे बैठ कर मृदुस्वर से तीन स्तुति का
पाठ कहे। तत्पश्चात् 'नमोत्थुणं आदि कह चैत्यवंदन करे ॥२७॥ अह पक्खिअंचउद्दसि दिणमि पुव्वं व तत्थ देवसि।
सुत्ततं पडिकमिउं, तो सम्ममिमं कम कुणइ ।।२८।। अर्थः अब चतुदर्शी के दिन करने का पक्खीप्रतिक्रमण कहते हैं। उसमें प्रथम
उपरोक्त कथनानुसार देवसीप्रतिक्रमण सूत्रकेपाठ तक विधिकह प्रतिक्रमण करना पश्चात् आगे कहा जाता है उसके अनुसार अनुक्रम से अच्छी तरह करना ।।२८11मुहपोत्ती वंदणयं, संबुद्धाखामणं तहाऽऽलोए।
वंदण पत्तेअक्खामणं च वंदणयमहसुत्तं ॥२९।। अर्थः प्रथम मुंहपत्ति का पडिलेहन करना, तथा वंदन करना, पश्चात् संबुद्धाखामणा
तथा अतिचार की आलोचनाकर बाद में वंदना तथा प्रत्येकखामणा करना, तदनंतर वंदनकर पाक्षिक सूत्र कहना।।२९।। सुत्तं अब्भुट्ठाणं, उस्सग्गो पुत्तिवंदणं तह य। ..
पज्जति अ खामणयं, तह चउरो थोभवंदणया ॥३०॥ अर्थः पश्चात् प्रतिक्रमणसूत्र कहकर काउस्सग्ग सूत्र का पाठ कहकर काउस्सग्ग
करना। तत्पश्चात् मुंहपत्ति पडिलेहनकर वंदना करके पायंतिक खामणा करे और चार थोभवंदना करे ॥३०॥ पुव्वविहिणेव सव्वं, देवसि वंदणाइतो कुणइ। सिज्जसुरी उस्सग्गे, भेओ संतिथयपढणे अ ।।३१।।