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श्राद्धविधि प्रकरणम्
341 है कि-सर्व जीव सर्व प्रकार का सम्बन्ध परस्पर पूर्व में पाये हुए हैं। परन्तु साधर्मिक आदि संबंध को पानेवाले जीव तो किसी-किसी जगह विरले ही होते हैं। साधर्मिक भाई का मिलाप भी बडा पुण्यकारी है, तो फिर शास्त्रानुसार साधर्मिक का आदरसत्कार करे तो बहुत ही पुण्यसंचय हो इसमें कहना ही क्या? कहा है कि एक तरफ सर्वधर्म
और दूसरी तरफ साधर्मिक वात्सल्य रखकर बुद्धिरूपी तराजू से तोलें तो दोनों समान उतरेंगे ऐसा कहा है। साधर्मिक का आदर सत्कार इस प्रकार करना चाहिएसाधर्मिक वात्सल्य कैसे करना? : __अपने पुत्र आदि का जन्मोत्सव और विवाहआदि हो तो साधर्मिक भाइयों को निमंत्रण करना और उत्तम भोजन, तांबूल, वस्त्र, आभूषण आदि देना। कदाचित् वे किसी समय संकट में आ पड़े तो अपना द्रव्य खर्च करके उन्हें आपत्ति से बचाना। पूर्व कर्म के अंतराय के दोष से किसीका धन चला जाये तो उसे पुनः पूर्ववत् अवस्था में लाना। जो अपने साधर्मिक भाइयों को पैसे टके से सुखी न करे, उस पुरुष की मोटाई किस कामकी? कहा है कि जिसने दीन जीवों का उद्धार न किया, साधर्मिक वात्सल्य नहीं किया, और हृदय में वीतराग का ध्यान न किया, उन्होंने अपना जन्म व्यर्थ गुमाया। अपने साधर्मिक भाई जो धर्म से भ्रष्ट होते हों तो, चाहे किसी भी प्रकार से उन्हें धर्म में स्थिर करना। जो वे धर्मकृत्य करने में प्रमाद करते हों तो उनको स्मरण कराना, और अनाचारादि से अटकाना। कहा है कि, प्रमाद करे तो याद कराना, अनाचार में प्रवृत्त होंवे तो रोकना, चूके तो प्रेरणा करना और बार-बार प्रेरणा करना वैसे ही अपने साधर्मिकों को वाचना, पृच्छना, परावर्तना, अनुप्रेक्षा और धर्मकथा इत्यादिक में यथासमय बुलाना, और श्रेष्ठधर्मानुष्ठान के लिए साधारण पौषधशाला आदि बनवाना इत्यादि।
श्राविकाओं का वात्सल्य भी श्रावक की तरह करना, उसमें कुछ भी कम बढ़ न करना। कारण कि, ज्ञान, दर्शन तथा चारित्र को धारण करनेवाली उत्कृष्ट शील को पालनेवाली तथा सन्तोषवाली ऐसी श्राविकाएं जिनधर्म में अनुरागिणी होती हैं, इसलिए उनको साधर्मिकता से मानना। शंकाः . लोक में तथा शास्त्र में स्त्रियां महादृष्ट कहलाती हैं। ये तो भमि बिना की
विषकदली, बिना मेघ की बिजली, जिस पर औषधि न चले ऐसी, अकारण मृत्यु, बिना निमित्त उत्पात, फण रहित सर्पिणी, और गुफा रहित वाघिनी के समान हैं। इनको तो प्रत्यक्ष राक्षसी के समान ही समझना चाहिए। गुरु तथा बन्धु पर का स्नेह टूटने का कारण ये ही हैं। कहा है कि-असत्यवचन, साहस,कपट, मूर्खता, अतिलोभ, अपवित्रता, और निर्दयता
ये स्त्रियों के स्वाभाविक दोष हैं। कहा है कि हे गौतम! जब अनंती १. साधर्मिक वात्सल्य के विषय में संपादक लिखित 'बीत गया जो जमाना' पुस्तक में धर्मदास
सेठ की कथा पढ़ें।