Book Title: Shraddhvidhi Prakaranam Bhashantar
Author(s): Jayanandvijay
Publisher: Jayanandvijay

View full book text
Previous | Next

Page 350
________________ श्राद्धविधि प्रकरणम् 339 प्रकाशा-५ : वर्षकृत्य मूल गाथा - १२+१३ पइवरिसंसंघच्चणसाहम्मिअभत्तिजत्ततिगं ॥१२।। जिणगिहि ण्हवणं जिणधणवुड्डी महपूअ धम्मजागरिआ। सुअपूआ उज्जवणं, तह तित्थपभावणा सोही ॥१३॥ (चतुर्थ प्रकाश में चातुर्मासिक कृत्य का वर्णन किया। अब रही हुई अर्धगाथा तथा तेरहवीं गाथा द्वारा एकादश द्वार से वर्षकृत्य कहते हैं।) संक्षेपार्थ : सुश्रावक को प्रतिवर्ष १ संघ की पूजा, २ साधर्मिक वात्सल्य, ३ अट्ठाइ, रथ-तीर्थ ऐसी तीन यात्राएं, ४ जिनमंदिर में स्नात्रमहोत्सव,५ देवद्रव्य की वृद्धि, ६ महापूजा, ७ रात्रि को धर्मजागरिका (रात्रिजागरण), ८ श्रुतज्ञान . पूजा, ९ उजमणा, १० शासन की प्रभावना और ११ आलोचना इतने धर्मकृत्य करना ।।१२-१३।। विस्तारार्थः श्रावक को प्रतिवर्षजघन्य से एक बार भी १ चतुर्विध श्री संघकी पूजा, २ साधर्मिकवात्सल्य,३ तीर्थयात्रा,रथयात्रा और अट्ठाईयात्रा,येतीन यात्राएं,४ जिनमंदिर में स्नात्रमहोत्सव, ५ माला पहनना, इन्द्रमाला आदि पहनना, पहिरावणी करना, धोतियां आदि देना तथा द्रव्य की वृद्धि हो उस प्रकार आरती उतारना आदि धर्मकृत्य करके देवद्रव्य की वृद्धि, ६ महापूजा, ७ रात्रि में धर्मजागरिका, ८ श्रुतज्ञान की विशेष पूजा, ९ अनेक प्रकार के उजमणे, १० जिन-शासन की प्रभावना, और ११ आलोचना इतने धर्मकृत्य यथाशक्ति करना। जिसमें श्रीसंघ की पूजा, अपने कुल तथा धन आदि के अनुसार बहुत आदर सत्कार से साधु-साध्वी के खप में आवे ऐसी आधाकर्मादि दोष रहित वस्तुएं गुरु महाराज को देना। यथा-वस्त्र, कम्बल, पादपोंछनक, सूत्र, ऊन, पात्र, जल के तुंबे आदि पात्र, दांडा, दांडी, सूई, कांटा निकालने का चिमटा, कागज, दवात, कलमें, पुस्तकें आदि। दिनकृत्य में कहा है कि वस्त्र, पात्र, पांचों प्रकार की पुस्तकें, कम्बल, आसन, दांडा, संथारा, सिज्जा तथा अन्य भी औधिक तथा औपग्रहिक, मुंहपत्ति, आसन जो कुछ शुद्ध संयम को उपकारी हो वह देना। प्रवचनसारोद्धारवृत्ति में कहा है कि-'जो वस्तु संयम को उपकारी हो, वह वस्तु उपकार करनेवाली होने से उपकरण कहलाती है, उससे अधिक वस्तु अधिकरण कहलाती है। असंयतपन से वस्तु का परिहार अर्थात् परिभोग (सेवन) करनेवाला असंयत कहलाता है।' यहां परिहार शब्द का अर्थ परिभोग करनेवाला किया, उसका पहावह दना।

Loading...

Page Navigation
1 ... 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400