Book Title: Shraddhvidhi Prakaranam Bhashantar
Author(s): Jayanandvijay
Publisher: Jayanandvijay

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Page 369
________________ 358 प्रकाश-६ : जन्मकृत्य १४ ( प्रथम द्वार ) जम्मंमि वासठाणं', तिवग्गसिद्धीइ कारणं उचिअं । उचिअं विज्जागहणं', पाणिग्गहणं च मित्ताई ॥१४ ॥ संक्षेपार्थः जन्म से त्रिवर्ग अर्थात् धर्म, अर्थ और काम इन तीनों वर्गों की साधनां हो सके ऐसा १ निवासस्थान, २ विद्या सम्पादन, ३ पाणिग्रहण और ४ मित्रादिक करना उचित है || १४ || मूल गाथा श्राद्धविधि प्रकरणम् - निवास कहाँ करना? : विस्तारार्थ : १ जन्मरूपी बन्दीगृह में प्रथम निवासस्थान उचित लेना । कैसा उचित है सो विशेषण से कहते हैं। जिससे त्रिवर्ग की अर्थात् धर्मार्थकाम की सिद्धि याने उत्पत्ति हो ऐसा, तात्पर्य यह है कि, जहां रहने से धर्म, अर्थ और काम की सम्यग् आराधना हो, वहां श्रावक को रहना चाहिए। अन्य जगह न रहना। कारण कि, अयोग्य स्थान पर रहने से इस भव से तथा परभव से भ्रष्ट होने की सम्भावना है। कहा है कि-भीललोगों की पल्ली में, चोरों के स्थान में, पहाड़ी लोगों की बस्ती में और हिंसक तथा दुष्ट लोगों का आश्रय करनेवाले लोगों के पास अच्छे मनुष्यों को न रहना चाहिए। कारण कि कुसंगति सज्जनों को खराब आदत लगानेवाली है। जिस स्थान में रहने से मुनिराज अपने यहां पधारें, तथा जिन-मंदिर समीप हो, आसपास श्रावक रहते हो ऐसे स्थान में गृहस्थ को रहना चाहिए। जहां बहुत से विद्वान लोग रहते हों, जहां शील प्राण से भी अधिक प्यारा गिना जाता हो, और जहां के लोग सदैव धर्मिष्ठ रहते हों, वहां ही आत्मार्थी मनुष्यों को रहना चाहिए। कारण कि, सत्पुरुषों की संगति कल्याणकारी है। जिस नगर में जिनमंदिर, सिद्धान्त, ज्ञानी साधु और श्रावक हो तथा जल और ईंधन भी बहुत हो, वहीं नित्य रहना चाहिए।' तीनसो जिनमंदिर तथा धर्मिष्ठ, सुशील और सुजान श्रावक आदि से सुशोभित, अजमेर के समीप हर्षपुर नामक एक श्रेष्ठ नगर था। वहां के निवासी अट्ठारह हजार ब्राह्मण और उन के छत्तीस हजार शिष्य बड़े-बड़े श्रेष्ठी श्रीप्रियग्रंथसूरि के नगर में पधारने पर प्रतिबोध को प्राप्त हुए। उत्तमस्थान में रहने से धनवान्, गुणी और धर्मिष्ठ लोगों का समागम होता है । और उससे धन, विवेक, विनय, विचार, आचार, उदारता, गंभीरता, धैर्य, प्रतिष्ठा आदि गुण तथा सर्वप्रकार से धर्मकृत्य करने में कुशलता प्रायः बिना प्रयत्न के ही प्राप्त होती है। यह बात अभी भी स्पष्ट दृष्टि में आती है। इसलिए १. स्वयं एवं अपने पुत्रादि को अमेरिकादि में भेजनेवाले विचारें ।

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