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श्राद्धविधि प्रकरणम्. .
361 घरधनी देशाटन को जावे, गाय अथवा बैल का शल्य निकले तो गाय बैल का नाश हो और मनुष्य के केश,कपाल, भस्म आदि निकले तो मृत्यु होती है, इत्यादि।
प्रथम और चौथा प्रहर छोड़कर दूसरे अथवा तीसरे प्रहर में घर पर आनेवाली वृक्ष अथवा ध्वजाआदि की छाया निरन्तर दुःखदायी है। अरिहंत की पीठ, ब्रह्मा और विष्णु की बाजू, चंडिका और सूर्य की दृष्टि तथा महादेव का उपरोक्त सर्व(पीठ, बाजू
और दृष्टि) छोड़ना। वासुदेव का वाम अंग, ब्रह्मा का दाहिना अंग,निर्माल्य,न्हवणजल, ध्वजा की छाया, विलेपन, शिखर की छाया और अरिहंत की दृष्टि ये श्रेष्ठ हैं। इसी प्रकार कहा है कि अरिहंत की पीठ,सूर्य और महादेव की दृष्टि व वासुदेव का बायां भाग छोड़ देना चाहिए। घर की दाहिनी ओर अरिहंत की दृष्टि पड़ती हो और महादेव की पूठ बाईं ओर पड़ती हो तो कल्याणकारी है। परन्तु इससे विपरीत हो तो बहुत दुःख होता है। उसमें भी बीच में मार्ग हो तो कोई दोष नहीं। नगर अथवा ग्राम में ईशानादि कोण दिशाओं में घर न करना चाहिए। यह उत्तम जाति के मनुष्य को अशुभकारी है; परन्तु चांडाल आदि नीच जाति को ऋद्धिकारी है। रहने के स्थान के गुण तथा दोष, शकुन, स्वप्न, शब्द आदिके बल से जानना चाहिए। __ उत्तम स्थान भी उचित मूल्य देकर तथा पड़ोसी की सम्मति आदि लेकर न्याय से ही ग्रहण करना चाहिए। किन्तु किसीका पराभव आदि करके कभी न लेना चाहिए। क्योंकि इससे धर्मार्थकाम के नाश होने की सम्भावना है। इसी प्रकार ईंट, लकड़ी,-- पत्थर इत्यादि वस्तुएँ भी दोष रहित, मजबूत हो वे ही उचित मूल्य देकर लेना अथवा मंगाना चाहिए। ये वस्तुएँ भी बेचनेवाले के यहां तैयार की हुई लेना, परन्तु खास तौर पर अपने लिये ही तैयार न करवाना चाहिए। कारण कि, उससे महाआरम्भ आदि दोष लगना सम्भव है। उपरोक्त वस्तुएं जिनमंदिर आदिकी हो तो न लेना,कारण कि उससे बहुत ही हानि होती है।
ऐसा सुनते हैं कि, दो वणिक् पड़ौसी थे। उनमें एक धनिक था, वह दूसरे का कदम-कदम पर पराभव करता था। दूसरा दरिद्री होने के कारण जब किसी प्रकार उसका नुकसान न कर सका तब उसने उसका घर बन रहा था उस समय चुपचाप एक जिनमंदिर का पड़ा हुआ ईंट का टुकड़ा उसकी भीत में रख दिया। घर बनकर तैयार हुआ तब दरिद्री पडौसी ने श्रीमन्त पड़ौसी को यथार्थबात कह दी। तब श्रीमन्त पड़ोसी ने कहा कि, 'इसमें क्या दोष है?' ऐसी अवज्ञा करने से विद्युत्पात आदि होकर उसका सर्वनाश हो गया।कहा है कि जिनमंदिर,कुआ, वावडी,स्मशान, मठ और राजमंदिर का सरसों बराबर भी पत्थर ईंट काष्ट आदि न लेना चाहिए।
पाषाणमय स्तंभ, पीठ, पाटिये, बारसाख इत्यादि वस्तुएं गृहस्थको हानिकारक हैं, परन्तु वे धर्मस्थान में शुभ हैं। पाषाणमय वस्तु ऊपर काष्ठ और काष्ठमय वस्तु के ऊपर पाषाण के स्तंभ आदि घर अथवा जिनमंदिर में कभी न रखना। हलका काष्ठ, घाणी, शकट (गाड़ा) आदि वस्तुएं तथा रहेंट आदि यंत्र ये, सब कांटेवाले वृक्ष, बड़