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श्राद्धविधि प्रकरणम्
वह धन सन्तान पाता है। हे राजन् ! चातुर्मास में गुड़ भक्षण न करे तो मधुरस्वरवाला होता है। कढ़ाई पर पकाया हुआ अन्न त्याग करे तो बहुत संतति पाता है। भूमि में संथारे पर सोये तो विष्णु का सेवक होता है। दही तथा दूध का त्याग करे तो गौलोक नामक देवलोक में जाता है। मध्याह्न समय तक जल पीना वर्जे तो रोगोपद्रव न होवे । जो पुरुष चातुर्मास में एकान्तर उपवास करता है, वह ब्रह्मलोक में पूजा जाता है। जो पुरुष चातुर्मास में नख व केश न उतारे वह प्रतिदिन गंगास्नान का फल पाता है।' जो दूसरों का अन्न त्यागे वह अनन्त पुण्य पाता है । चातुर्मास में भोजन करते समय जो मौन न रहे, वह केवल पाप ही भोगता है, ऐसा जानना । मौन धारण करके भोजन करना उपवास के समान है।' इसलिए चातुर्मास में मौनभोजन तथा अन्य नियम अवश्य ग्रहण करने चाहिए। इत्यादि...
इति श्रीरत्नशेखरसूरि विरचित
श्राद्धविधिकौमुदी की हिन्दीभाषा का चातुर्मासिककृत्यनामक चतुर्थः प्रकाशः सम्पूर्णः
भौतिक पदार्थ की प्राप्ति की आशा अनादिकाल से आत्मप्रदेश के अणु - अणु पर तूने स्वयंने चीपकायी हुइ है। वह आशारूपी आग प्रत्येक भव में तुझे जला रही है, पर तेरा ध्यान उस ओर है ही नहीं। तू उसे शीतलजल मानकर जी रहा है। यही भ्रमणा दूर करने के लिए जानीपुरुष कहते हैं कि, " आशारूपी अग्नि में भौतिक पदार्थों की पूर्तिरूपी काष्ट डालना बन्ध कर दे, जिससे यह आशा की आग अपने आप बुझ जायगी।
तब तुझे वास्तविक शांतता का अनुभव होगा । "
१. यह अजैन ग्रंथ की मान्यता दर्शायी है। ऐसी मान्यता दर्शाने के पीछे कारण यह है कि उनके धर्माचार्यों ने भी इन-इन कार्यों का त्याग करने का विधान किया है।