Book Title: Shraddhvidhi Prakaranam Bhashantar
Author(s): Jayanandvijay
Publisher: Jayanandvijay

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Page 360
________________ श्राद्धविधि प्रकरणम् 349 उजमणा-उद्यापन : इसी प्रकार नवकार, आवश्यकसूत्र, उपदेशमाला, उत्तराध्ययन इत्यादि ज्ञान दर्शन और विविध प्रकार के तप संबंधी उजमणे में जघन्य से एक उजमणा तो प्रतिवर्ष यथाविधि अवश्य करना चाहिए। कहा है कि मनुष्यों को उजमणा करने से लक्ष्मी श्रेष्ठ स्थान में प्राप्त होती है, तपस्या भी सफल होती है और निरन्तर शुभध्यान, समकित का लाभ, जिनेश्वर भगवान की भक्ति तथा जिनशासन की प्रभावना होती है। तपस्या पूरी होने पर उजमणा करना वह नये बनाये हुए जिनमंदिर पर कलश चढ़ाने के समान, चांवल से भरे हुए पात्र ऊपर फल डालने के समान अथवा भोजन कर लेने पर तांबूल देने के समान है। शास्त्रोक्त विधि के अनुसार लाख अथवा करोड़ बार नवकार की गणना करके जिनमंदिर में स्नात्रोत्सव साधर्मिकवात्सल्य, संघपूजा आदि विशेष धूमधाम से करना। लाख अथवा करोड़ चांवल, अड़सठ सोने अथवा चांदी की कटोरियां, पाटिये, लेखनियां तथा रत्न, मोती, मूंगा, रुपयादि, नारियल आदि अनेक फल, तरह-तरह के पक्वान्न,धान्य तथा खाद्य और स्वाद्य अनेक वस्तुएं, वस्त्र आदि रखकर उजमणा करनेवाले, उपधान करना आदि विधि सहित माला पहनकर आवश्यकसूत्रका उजमणा करनेवाले,गाथाकी संख्यानुसार अर्थात् पांचसौचुम्मालीस मोदक,नारियल,कटोरियां आदि विविध वस्तुएं रखकर उपदेशमालादिक का उजमणा करनेवाले, स्वर्णमुद्रा आदि वस्तु अंदर रख लड्डू आदि वस्तु की प्रभावना करके दर्शनादिक का उजमणा करनेवाले भव्यजीव भी वर्तमानकाल में दृष्टि में आते हैं। उपधान : माला पहनना यह महान् धर्मकृत्य है। कारण कि, नवकार, इरियावही इत्यादि सूत्र शक्त्यनुसार तथा विधि सहित उपधान किये बिना पढ़ना गुणना आदि अशुद्ध क्रिया मानी जाती है, श्रुत की आराधना के लिए जैसे साधुओं को योग वहन करना, वैसे ही श्रावकों को उपधान तप अवश्य करना चाहिए। माला पहनना यही उपधान तप का उजमणा है। कहा है कि कोई श्रेष्ठ जीव यथाविधि उपधान तप करके अपने कंठ में नवकार आदि सूत की माला तथा गुरु की पहनाई हुई सूत की माला (वर्तमान में रेश्मी माला) धारण करता है, वह दो प्रकार की शिवश्री (निरुपद्रवता और मोक्षलक्ष्मी) प्राप्त करता है, मानो मुक्तिरूपी कन्या की वरमाला, सकृतरूपी जल खेंचकर निकालने की घड़ों की माला तथा प्रत्यक्षगुणों की गूंथी हुई माला ही हो, ऐसी माला धन्य लोगों से ही पहनी जाती हैं। इसी प्रकार से ही शुक्ला पंचमी आदि विविध तपस्याओं के उजमणे भी उन तपस्याओं के उपवास आदिकी संख्यानुसार द्रव्य,कटोरियां, नारियल, लड्डू आदि विविध वस्तुएं रखकर शास्त्र तथा संप्रदाय के अनुसार करना। गुरु भगवंत का प्रवेशोत्सव : इसी तरह तीर्थ की प्रभावना के लिए श्री गुरु महाराज पधारनेवाले हो, तब उनका सामैया, प्रभावनाआदि प्रतिवर्ष जघन्य से एक बार तो अवश्य करना ही

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