________________
श्राद्धविधि प्रकरणम्
335 तप, संसारतारण तप, अट्ठाइ, पक्षक्षमण, मासक्षमण आदि विशेष तपस्याएं भी यथाशक्ति करना। रात्रि को चौविहार न हो सके तो तिविहार का पच्चक्खाण करना । पर्व में विगई का त्याग तथा पौषध, उपवास आदि करना । प्रतिदिन अथवा पारणे के दिन अतिथिसंविभाग का नियम अवश्य लेना । इत्यादि
पूर्वाचार्यों ने चातुर्मास के जो अभिग्रह कहे हैं, वे इस प्रकार हैं-ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चारित्राचार, तपाचार और वीर्याचार आश्रयी द्रव्यादिभेद से अनेक प्रकार चातुर्मासिक अभिग्रह होते हैं। यथा
तत्र (१) ज्ञानाचार में मूलसूत्र पठनरूपी स्वाध्याय करना, व्याख्यान सुनना, सुने हुए धर्म का चिन्तन करना और यथा शक्ति शुक्लपक्ष की पंचमी के दिन ज्ञानपूजा करना (२) दर्शनाचार में जिनमंदिर में सफाई करना, लीपना, गुहलि (स्वस्ति) मांडना आदि, जिनपूजा, चैत्यवन्दन और जिनबिंब को उबटन करके निर्मल करना आदि कार्य करना । (३) चारित्राचार में जोंक छुड़ाना नहीं (जलो लगाकर शरीर पर से अशुद्ध खुन निकलवाना नहीं), जूं तथा शरीर में रहे हुए गिंडोले (शरीर के फोड़े में घाव में उत्पन्न कीडे को बाहर न डालना) नहीं डालना, कीड़ेवाली वनस्पति को खार न देना, काष्ठ में अग्नि में तथा धान्य में त्रसजीव की रक्षा करना। किसीको कष्ट न देना, आक्रोश न करना, कठोर वचन न बोलना, देवगुरु के सौगंद न खाना, चुगली न करना, दूसरे का अपवाद नहीं करना, माता-पिता की दृष्टि चुकाकर काम न करना, निधान का, आदान और पड़ी हुई वस्तु में यतना रखना, दिन में पूर्ण रूप से ब्रह्मचर्य का पालन करना, रात्रि में पुरुष को परस्त्री की तथा स्त्री को परपुरुष की सेवा नहीं करना, धन धान्यआदि नवविध परिग्रह का जितना प्रमाण रखा हो उसमें भी संक्षेप करना । दिशा परिमाण व्रत में भी किसीको पदार्थ भेजना, संदेशा कहलाना, अधोभूमि को जाना इत्यादि वर्जित
करना ।
-
-
स्नान, उबटन, धूप, विलेपन, आभूषण, फूल, तांबूल, कपूर, अगर, केशर, कस्तूरी का नाफा और कस्तूरी इन वस्तुओं का परिमाण रखना । मजीठ, लाख, कुसुंबा और नील से रंगे हुए वस्त्र का परिमाण करना, तथा रत्न, हीरा, मणि, सुवर्ण, चांदी, मोती आदि का परिमाण करना। खजूर, द्राक्ष, अनार (दाड़िम), उत्तत्तिय, नारियल, केला, मीठा नींबू, जामफल, जामुन, खिरनी, नारंगी, बिजोरा, ककड़ी, अखरोट, वायमफल, चकोत्रा, टेमरू, बिल्वफल, इमली, बेर, बिल्लुकफल, फूट, केर, करौंदे, भोरड़, नींबू, अम्लवेतस, इनका अथाणा, अंकुर, तरह-तरह के फूल तथा पत्र, सचित्त, बहुबीज, अनंतकाय आदि का भी क्रमशः त्याग करना । तथा विगई और विगई के अन्दर आनेवाली वस्तु का परिमाण करना । वस्त्र धोना, लीपना, खेत खोदना, नहलाना, दूसरे की जूएं निकालना, कृषि सम्बन्धी तरह-तरह के कार्य, खांडना, पीसना, नहाना, अन्न पकाना, उबटन लगाना इत्यादिक का संक्षेप करना । तथा झूठी साक्षी का त्याग करना। देशावकाशिक व्रत में भूमि खोदना, जल लाना, वस्त्र धोना,