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श्राद्धविधि प्रकरणम्
307 और पश्चात् भुजाएं लंबीकर तथा कोहनी से चोलपट्ट धारणकर रजोहरण, या चरवला और मुहपत्ति हाथ में रखकर घोडग आदि दोष टालकर काउस्सग्ग करे। उस समय पहना हुआ वस्त्र नाभि से नीचे और घुटनों से चार अंगुल ऊंचा होना चाहिए ॥३-४॥ तत्थ य धरेइ हिअए, जहक्कम दिणकए अइआरे।
पारेत्तु णमोक्कारे-ण पढइ चउवीसथयदंडं ।।५।। अर्थः काउस्सग्ग करते वखत मन में दिनभर के किए हुए अतिचारों का चितवन
करना। पश्चात् नवकार से काउस्सग्ग पारकर लोगस्स कहना।।५।। संडासगे पमज्जिअ, उवविसिअ अलग्गबिअयबाहुजुओ।
मुहणंतगं च कायं, च पेहए पंचवीसइहा ।।६।। अर्थः संडासक पूंजकर नीचे बैठ दोनों भुजाएं शरीर से अलग लम्बी कर
मुहपत्ति तथा काया की पच्चीस-पच्चीस पडिलेहणा करना।।६।। उहिअ ठिओ सविणयं, विहिणा गुरुणो करेइ किइकम्म। ..
बत्तीसदोसरहिअं, पणवीसावस्सगविसुद्धं ॥७॥ अर्थः उठकर खड़े रहकर विधिपूर्वक गुरु को कृतिकर्म (वन्दना) करे। उसमें
बत्तीस दोष टालना, और पच्चीस आवश्यक की विशुद्धि रखना।।७॥ अह संममवणयंगो, करजुअविहिधरिअपुत्तिरयहरणो।
परिचिंतइ अइआरे, जहक्कम गुरुपुरो विअडे ॥८॥ अर्थः पश्चात् सम्यग् रीति से शरीर नमाकर दोनों हाथ में यथाविधि मुहपत्ति और
रजोहरण अथवा चरवला लेकर गुरु के सन्मुख स्पष्टता से अतिचारों का चितवन करना।।८॥ अह उवविसित्तु सत्तं, सामाइअमाइ पढिय पयओ।
अब्मुट्ठिअम्हि इच्चाइ पढइ दुहओ डिओ विहिणा ॥९॥ अर्थः पश्चात् नीचे बैठकर सामायिक आदि सूत्र यतना से कहे। तत्पश्चात् द्रव्य
भाव से उठकर 'अब्भुट्ठिअम्हि' इत्यादि पाठ विधिपूर्वक कहे। · दाऊण वंदणं तो, पणगाइसु जइसु खामए तिण्णि।
किइकम्मं करिय आयरि-अमाइ गाहातिगं पढए ॥१०॥ अर्थः पश्चात् वन्दना करके पांच आदि साधु हो तब तीन आदि साधुओं को
खमावे और 'आयरिअ' इत्यादि तीन गाथाओं का पाठ कहे। इअ सामाइअउस्सग्गसुत्तमुच्चरिअ काउसग्गठिओ।
चिंतइ उज्जोअदुगं, चरित्तअइआरसुद्धिकए ।।११।। अर्थः इस प्रकार सामायिकसूत्र तथा कायोत्सर्ग सूत्र का पाठकहकर, चारित्राचार
शुद्धि के लिए काउस्सग्गकर दो लोगस्स का चिन्तन करना ।।११।।