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श्राद्धविधि प्रकरणम् हजारों मिथ्यादृष्टि की अपेक्षा एक बारहव्रतधारी श्रावक श्रेष्ठ है, और हजारों बारहव्रतधारी श्रावकों से एक पंचमहाव्रतधारी मुनिराज श्रेष्ठ है। हजारों मुनिराज से एक तत्त्वज्ञानी श्रेष्ठ है। तत्त्वज्ञानी के समान पात्र न हुआ और न होगा। सत्पात्र, महान् श्रद्धा, योग्यकाल, उचितवस्तु आदि धर्मसाधन की सामग्री बड़े पुण्य से प्राप्त होती है।
१ अनादर, २ विलम्ब, ३ पराङ्मुखता, ४ कटुवचन और ५ पश्चात्ताप ये पांचों शुद्धदान को भी दूषित करते हैं, १ भौं ऊंची चढ़ाना, २ दृष्टि ऊंची करना, ३ अंतवृत्ति रखना, ४ पराङ्मुख होना, ५ मौन करना और ६ कालविलम्ब करना यह छः प्रकार की नाही (इन्कार असम्मति) कहलाती है। १ आंख में आनंदाश्रु, ३ पुलकित (रोमांचित) होना, ३ बहुमान, ४ प्रियवचन और ५ अनुमोदना ये पांचों पात्रदान के भूषण हैं। सुपात्रदान और परिग्रहपरिमाणव्रत के पालन ऊपर
रत्नसारकुमार की कथा एक महान् संपत्तिशाली रत्नविशालानामक नगरी थी। उसमें यथानाम गुणधारी समरसिंह नामक राजा राज्य करता था। उसी नगरी में दरिद्री मनुष्यों के दुःखों का हरण करनेवाला वसुसार नामक एक धनाढ्य व्यापारी रहता था। उसकी स्त्री का नाम वसुंधरा था तथा उनके रत्नसमान उत्कृष्ट गुणवान रत्नसार नामक एक पुत्र था। एक समय वह अपने मित्रों के साथ वन में गया। विचक्षण बुद्धि रत्नसार ने वहां विनयंधर आचार्य को देख उनको वन्दना करके पूछा कि, 'हे महाराज! इस लोक में भी सुख की प्राप्ति किस प्रकार हो सकती है?' उन्होंने उत्तर दिया, 'हे दक्ष! संतोष की वृद्धि रखने से इस लोक में भी जीव सुखी होता है, अन्य किसी प्रकार से नहीं। संतोष देशव्यापी तथा सर्वव्यापी दो प्रकार का है, जिसमें देशव्यापी जो संतोष है उससे गृहस्थ पुरुषों को सुख होता है। परिग्रहपरिमाणवत अंगीकार करने से गृहस्थ पुरुषों को देशव्यापी संतोष बढ़ता है। कारण कि, परिग्रह परिमाण करने से अपार आशा मर्यादा में आ जाती है।सर्वव्यापी संतोष की वृद्धि तो मुनिराज से हीकी जा सकती है। इससे अनुत्तरविमानवासी देवताओं से भी श्रेष्ठ सुख की इसीलोक में प्राप्ति होती है।
भगवती सूत्र में कहा है कि एक मास पर्यंत दीक्षापर्याय पालनेवाले साधु ग्रहण किये हुए चारित्र के विशुद्धपरिणाम से वाणमंतर की, दो मास तक पालनेवाले भवनपति की, तीन मास तक पालनेवाले असुरकुमार की, चार मास तक पालन करनेवाले ज्योतिषी की, पांच मास तक पालनेवाले चन्द्र सूर्य की, छः मास तक पालन करनेवाले सौधर्म तथा ईशान देवता की, सात मास तक पालनेवाले सनत्कुमारवासी देवता की, आठ मास तक पालनेवाले ब्रह्मवासी तथा लांतकवासी देवता की, नव मास तक पालनेवाले शुक्रवासी तथा सहस्रारवासी देवता की, दश मास तक पालनेवाले
आनत आदि चार देवलोक में रहनेवाले देवता की, ग्यारह मास तक पालनेवाले ग्रेवैयकवासी देवता की, तथा बारह मास तक पालनेवाले अनुत्तरोपपातिकदेवता की