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बाहर बैठाया....इत्यादि । नफा कितना करना? : कहा है कि
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श्राद्धविधि प्रकरणम्
ठचि मुत्तूण कलं, दव्वादिकमागयं च उक्करिसं । निवडिअमवि जाणतो, परस्स संतं न गिव्हिज्जा || १ ||
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प्रति सैंकडे चार पांच टका तक उचित व्याज अथवा 'व्याज में दुगुना मूल द्रव्य हो जाय' ऐसा वचन है, जिससे उधार दिये हुए द्रव्य की दुगुनी वृद्धि और उधार दिये हुए धान्य की तिगुनी वृद्धि हो उतना लाभ लेना चाहिए।' तथा जो गणिमधरिमादि वस्तु का सर्वत्र किसी कारण से क्षय हो गया हो, और अपने पास हो तो उसका ऊंचे भाव से जितना उत्कृष्ट लाभ हो, उतना लेना; परन्तु इसके सिवाय अन्य लाभ नहीं लिया जा सकता। तात्पर्य यह है कि, यदि किसी समय भाविभाव से सुपारी आदि वस्तु का नाश होने से अपने पास की संगृहीत वस्तु बेचते दुगुना अथवा उससे भी अधिक लाभ हो, वह मन में शुद्ध परिणाम रखकर लेना, परन्तु 'सुपारी आदि वस्तु का सर्वत्र नाश हुआ, यह ठीक हुआ।' ऐसा चिन्तन न करना । वैसे ही किसी भी जगह पड़ी हुई दूसरे की वस्तु न उठाना । व्याज, बट्टा अथवा क्रय-विक्रय आदि व्यापार में देश, काल आदि अपेक्षा से उचित तथा शिष्टजनों को निंदापात्र न हो उस रीति से जितना लाभ मिले उतना ही लेना; ऐसा प्रथम पंचाशक की वृत्ति में कहा है।
अन्याय न करना :
वैसे ही खोटी तराजू, तौल व खोटे माप रखकर न्यूनाधिक व्यापार करके अथवा वस्तु मिश्रण करके, मर्यादा की अपेक्षा अधिक अयोग्य मूल्य बढ़ाकर, अयोग्य रीति से ब्याज बढ़ाकर, घूस (रिश्वत) ले या देकर, खोटा अथवा घिसा हुआ पैसा देकर, किसीके क्रय-विक्रय का भंग करके, दूसरे के ग्राहक को बहकाकर खींचकर, नमूना कुछ बता माल दूसरा देकर, जहां बराबर दिखता न हो ऐसे स्थान में वस्त्रादिक का व्यापार करके, लेख में फेरफार करके तथा ऐसे ही अन्य किसी प्रकार से किसीको भी ठगना नहीं। कहा है कि
विधाय मायां विविधैरुपायैः परस्य ये वञ्चनमाचरन्ति ।
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ते वञ्चयन्ति त्रिदिवापवर्गसुखान्महामोहसखाः स्वमेव ॥१॥
जो लोग तरह-तरह की माया करके दूसरों को ठगते हैं, वे मानो मोहजाल में पड़कर अपने आप को ही ठगते हैं । कारण कि, वे लोग कूड़कपट न करें तो समय पर स्वर्ग तथा मोक्ष का सुख प्राप्त करते। इस पर से यह कुतर्क न करना कि, कूड़कपट किये बिना दरिद्री तथा गरीब लोग व्यापार के ऊपर अपनी आजीविका किस तरह करे ?
१. सूत्र रचना काल के समय में व्यापार में नफे का परिमाण दुगुनी, तिगुनी वृद्धि का दर्शाया है। अर्थात् उस समय व्यापारी लोगों की संख्या कम होगी।