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श्राद्धविधि प्रकरणम्
233 संजीवनी विद्या है। उससे शेष सम्पूर्ण प्रीति सजीव हो जाती है। योग्य अवसर में प्रीतिवचन का उपयोग किया हो तो वह दानादिक से भी अत्यधिक गौरव उत्पन्न करता है। कहा है किन सद्वाक्यात्परं वश्यं, न कलायाः परं धनम्।
न हिंसायाः परोऽधर्मो, न सन्तोषात्परं सुखम् ॥१॥ प्रीतिवचन के सिवाय अन्य वशीकरण नहीं, कलाकौशल के समान अन्य धन नहीं, हिंसा के समान अन्य अधर्म नहीं और सन्तोष के समान अन्य सुख नहीं है।
सुस्सूसाइ पयट्टइ, वत्थाभरणाइ समुचिअंदेइ।
नाडयपिच्छणयाइसु, जणसंमद्देसु वारेइ ।।१४।। अर्थः पुरुष अपनी स्त्री को स्नान कराना, पग दबाना आदि अपनी कार्यसेवा में
प्रवृत्त करे। देश, काल, अपने कुटुम्ब धन आदि का विचार करके उचित वस्त्र, आभूषण आदि उसको दे, तथा जहां नाटक, नृत्य आदि होते हैं ऐसे बहुत से लोगों के मेले में जाने को उसे मना करे। अपनी कायसेवा में स्त्री को लगाने का कारण यह है कि, उससे पति के ऊपर उसका पूर्ण विश्वास रहता है, उसके मन में स्वाभाविक प्रेम उत्पन्न होता है, जिससे वह कभी भी पति की इच्छा के प्रतिकूल कार्य नहीं करती। आभूषणादि देने का कारण यह है कि, स्त्रियों के आभूषणादि से सुशोभित रहने से गृहस्थ की लक्ष्मी बढ़ती है, कहा है किश्रीर्मङ्गलात्प्रभवति, प्रागल्भ्याच्च प्रवर्द्धते। दाक्ष्यात्तु कुरुते मूलं, संयमात्प्रतितिष्ठति ॥१॥
लक्ष्मी मांगलिक करने से उत्पन्न होती है। धीरज से बढ़ती है। दक्षता से दृढ़ होकर रहती है और इन्द्रियों को वश में रखने से स्थिर रहती है। नाटक आदि मेलो में स्त्रियों को न जाने देने का कारण यह है कि, वहां निम्न लोगों की चेष्टाएं मर्यादा रहित निम्न वचन आदि देखने सुनने से स्त्रियों का निर्मल मन वर्षाऋतु के पवन से दर्पण की तरह प्रायः बिगड़ता है।
रुंभइ रयणिपयारं, कुसीलपासंडिसंगमवणेइ।
गिहकज्जेसु निओअइ, न विओअइ अप्पणा सद्धिं ।।१५।। अर्थः पुरुष अपनी स्त्री को रात्रि में बाहर राजमार्ग में अथवा किसीके घर जाने
को मना करे, कुशील तथा पाखंडी की संगति से दूर रखे, देना लेना सगे सम्बन्धियों का आदर मान करना, रसोइ करना इत्यादि गृहकार्य में अवश्य
लगाये, अपने से अलग अकेली न रखे। स्त्री को रात्रि में बाहर जाने से १. घर में ही टी.वी., वीडिओ, चेनल, केसेटे आदि साधन लाकर स्त्री को देनेवाले क्या अपनी
स्त्री का उचित आचरण करते हैं?