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श्राद्धविधि प्रकरणम्
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कारण कि, ग्वालिन के सिर पर रखे हुए छारा के बरतन में ऊपर उड़ती हुई सेमली के मुख में पकड़े हुए सर्प के मुंह से विष पड़ गया था। कार्पटिक के मर जाने से ब्राह्मणी ने अत्यन्त हर्षित होकर कहा कि, 'देखो, यह कैसा धर्मिपन!!' उस समय आकाश स्थित हत्या ने विचार किया कि, 'दाता (श्रेष्ठी) निरपराधी है, सर्प अज्ञानी तथा सेमली के मुख में जकड़ा हुआ होने से विवश है, सेमली की तो जाति ही सर्पभक्षक है तथा ग्वालिन भी इस बात से अजान है । अतएव मैं अब किसे लगूं?" यह विचारकर वह हत्या अन्त में वृद्धा ब्राह्मणी को लगी । जिससे वह काली, कुबड़ी और कोढी हो गयी...इत्यादि। [लौकिक उदाहरण है।]
सुनी हुई बात :
सत्यदोष कहने पर एक दृष्टान्त है कि किसी राजा के संमुख किसी परदेशी की लायी हुई तीन खोपड़ियों की पंडितों ने परीक्षा की यथा -एक के कान में डोरा डाला वह उसके मुख में से निकला, सुना हो उतना मुख से बकने वाली उस खोपड़ी की किमत फूटी कौड़ी बतायी। दूसरी खोपड़ी के कान से डाला हुआ डोरा उसके दूसरे कान में से बाहर निकला। उस एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल देनेवाली की कीमत एक लक्ष सुवर्ण मुद्रा की। तीसरी के कान में डाला हुआ डोरा उसके गले में उतर गया। उस सुनी हुई बात को मन में रखनेवाली की कीमत पंडित लोग न कर सके इत्यादि ।
इसी प्रकार सरल प्रकृति लोगों की हंसी करना, गुणवान लोगों से डाह करना, कृतघ्न होना, बहुत से लोगों से विरोध रखनेवाले मनुष्य की संगति करना, लोकमान्य पुरुष का मानभंग करना । सदाचारी लोगों के संकट में आने पर प्रसन्न होना । शक्ति होते हुए आपत्तिग्रस्त अच्छे मनुष्य की सहायता न करना । देशोचित रीतिरिवाज को छोड़ना, धन के प्रमाण से विशेष स्वच्छ अथवा विशेष मलीन वस्त्रादिक धारण करना इत्यादि बातें लोकविरुद्ध कहलाती हैं। इनसे इस लोक में अपयश आदि होता है। वाचकशिरोमणि श्री उमास्वातिवाचकजी ने कहा है कि
लोकः खल्वाधारः, सर्वेषां धर्मचारिणां यस्मात् । तस्माल्लोकविरुद्धं, धर्मविरुद्धं च सन्त्याज्यम् ॥१॥
समस्त धर्मी मनुष्यों का आधार लोक है । इसलिए जो बात धर्मविरुद्ध अथवा लोकविरुद्ध हो उसको सर्वथा त्याग देना चाहिए। इससे अपने ऊपर लोगों की प्रीति उत्पन्न होती है, स्वधर्माराधन होता है और सुखपूर्वक निर्वाह होता है। कहा है किलोकविरुद्ध को छोड़नेवाला मनुष्य समस्त लोगों को प्रिय होता है । और लोकप्रिय होना यह समकित वृक्ष का बीज है।
धर्मविरुद्ध—–मिथ्यात्वकृत्य करना, मन में दया न रखकर बैल आदि को मारना, बांधना आदि, जूएं, खटमल आदि को धूप में डालना, सिर के बाल बड़ी कंघी से