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श्राद्धविधि प्रकरणम् का विचार करना। जो राजा दरिद्री अथवा धनवान, मान्य अथवा अमान्य तथा उत्तम अथवा अधम मनुष्य को मध्यस्थ वृत्ति रखकर समानता से न्याय देता है, तो उसके कार्य में धर्म का विरोध नहीं है। यथा
कल्याणकटकपुर में अत्यन्त न्यायी यशोवर्मा नामक राजा था। उसने अपने राजमंदिर के द्वार में न्याय घंटा नामक एक घंट बंधाकर रखा था। एक समय राजा के न्याय की परीक्षा के निमित्त राज्य की अधिष्ठायिका देवी तत्काल प्रसूति हुई गाय व बछड़े का रूप प्रकटकर राजमार्ग में बैठ गयी। इतने में राजपुत्र बड़े वेग से दौड़ती हुई एक घोड़ी पर बैठकर वहां आ पहुंचा। वेग बहुत होने से बछड़े के दो पग घोड़ी के अड़फेट में आये व उससे बछड़े की मृत्यु हो गयी। तब गाय आंख में से पानी टपकाते हुए चिल्लाने लगी। किसीने गाय को कहा कि, 'तू राजद्वार पर जाकर न्याय मांग'। तब उसने वहां जाकर अपने सींग की नोक से न्यायघंट बजाया। राजा यशोवर्मा उस समय भोजन करने बैठा था, उसने घंटे का शब्द सुनते ही पूछा कि, 'घंटा कौन बजाता है?' सेवकों ने द्वार पर आ, देखकर कहा कि, 'हे देव! कोई नहीं है। आप भोजन करिए।' राजा ने कहा, 'किसने बजायी, इसका निर्णय हुए बिना मैं किस प्रकार भोजन करूं?' पश्चात् भोजन का थाल छोड़कर राजा द्वार पर आया तथा दूसरा कोई दृष्टि में न आने से उसने गाय को पूछा कि, 'क्या किसीने तुझे कष्ट पहुंचाया है? कष्ट पहुंचानेवाला कौन है? उसे मुझे बता।' तब गाय आगे चलने लगी व राजा भी उसके पीछे हो गया। गाय ने मरा हुआ बछड़ा दिखाया। राजा ने कहा-'इस बछड़े के ऊपरसे जो घोड़ी को कुदाता हुआ गया है, वह मेरे संमुख प्रकट हो।' परन्तु जब कोई कुछ न बोला तब राजा ने पुनः कहा कि, 'जब अपराधी प्रकट होगा तभी मैं भोजन करूंगा।'
उस दिन राजा को लंघन हुआ, तब प्रातः राजकुमार ने कहा-'हे तात! मैं अपराधी हूं। मुझे यथोचित दंड दो।' तदनन्तर राजा ने स्मृति के ज्ञाता पुरुषों से पूछा कि, 'इसे क्या दंड देना चाहिए?' उन्होंने उत्तर दिया, 'हे राजन्! राज्य के योग्य यह तेरा एक मात्र पुत्र है, अतएव इसके लिए क्या दंड बताये?' राजा ने कहा-'किसका राज्य और किसका पुत्र? मैं तो न्याय को ही सभी वस्तुओं से श्रेष्ठ मानता हूं। कहा है कि
दुष्टस्य दण्डः स्वजनस्य पूजा, न्यायेन कोशस्य च सम्प्रवृद्धिः। . अपक्षपातो रिपुराष्ट्ररक्षा, पञ्चैव यज्ञाः कथिता नृपाणाम् ।।१।।
१ दुर्जन को दंड,२ सज्जन की पूजा करना, ३ न्याय से भंडार की वृद्धि करना, ४ पक्षपात न रखना, और ५ शत्रु से राज्य की रक्षा करना। ये ही राजाओं के लिए नित्य करने के योग्य पंच महायज्ञ हैं। सोमनीति में भी कहा है कि राजा को अपने पुत्र को भी अपराध के अनुसार दंड देना चाहिए। अतएव इसके लिये जो योग्य दंड हो सो कहो।' राजा के इतना कहने पर भी जब वे विद्वान् लोक कुछ न बोले तब राजा ने 'जो जीव किसी अन्य जीव को जिस प्रकार व जो दुःख दे, उसको बदले में उसी प्रकार से वही दुःख मिलना चाहिए।' तथा 'कोई अपकार करे तो उसको अवश्य बदला देना