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श्राद्धविधि प्रकरणम्
अट्ठानवे लाख द्रव्य के व्यय का वर्णन सुनकर, उसने खिन्न होकर कहा कि, 'मुझ कृपण ने एक करोड द्रम्म भी धर्मकार्य में व्यय नहीं किया।' यह सुन उसके पुत्रों ने उसी समय दश लाख द्रम्म धर्मकार्य में व्यय किया। जिससे सब मिलकर एक करोड़ आठ लाख द्रम्म धर्म खाते गये। आभड़ के पुत्रों ने और भी आठ लाख द्रम्म धर्मकृत्य में व्यय करने का संकल्प किया। तदनन्तर कालसमय आने पर आभड़ अनशनकर स्वर्ग में गया.... इत्यादि ।
पूर्वभव में किये हुए दुष्कृत के उदय से पुनः पूर्ववत् अवस्था आ जाये तो भी मन में धैर्य रखना कारण कि, आपत्तिकाल रूप समुद्र में डूबते हुए जीव को धीरज नौका के समान है। सर्व दिन समान किसके रहते हैं? कहा है कि
को इत्थ सया सुहिओ ?, कस्स व लच्छी ? थिराई पिम्माई ? |
को मच्चुणा न गसिओ ?, को गिद्धो नेव विसएसु ? ॥१॥
इस संसार में सदा ही कौन सुखी है? लक्ष्मी किसके पास स्थिर रही ? स्थिर प्रेम कहां है? मृत्यु के वश में कौन नहीं? और विषयासक्त कौन नहीं? बुरी दशा आने पर सर्वसुख के मूल संतोष को ही नित्य मन में रखना चाहिए, अन्यथा चिंता से इस लोक के तथा परलोक के भी कार्य नष्ट हो जाते हैं। कहा है कि -चिंता नामक नदी आशारूपी पानी से परिपूर्ण होकर बहती है । हे मूढ़जीव ! तू उसमें डूबता है, इसलिए इसमें से पार करनेवाले संतोषरूपी नौका का आश्रय कर नानाप्रकार के उपाय करने पर भी जो ऐसा मालूम पड़े कि, 'अपनी भाग्यदशा ही हीन है।' तो युक्तिपूर्वक किसी भाग्यशाली पुरुष का आश्रय करना । कारण कि, काष्ठ का आधार मिलने पर तो लोहा व पाषाण आदि भी पानी में तैरते हैं। ऐसा सुनते हैं कि
भाग्यवान का आश्रय :
एक भाग्यशाली श्रेष्ठी था । उसका मुनीम बड़ा ही विचक्षण था। वह भाग्यहीन होते हुए भी श्रेष्ठी के संपर्क से धनवान हो गया। जब श्रेष्ठी का देहान्त हो गया तब वह पुनः निर्धन हो गया । तदनन्तर वह श्रेष्ठी के पुत्रों के पास रहने की इच्छा करता था, परन्तु उसे निर्धन जानकर वे उससे एक अक्षर भी बोलते न थे। तब उसने दो तीन अच्छे मनुष्यों को साक्षी रखकर युक्ति से श्रेष्ठी की पूरानी बही में अपने हाथ से लिखा कि, "श्रेष्ठी के दो हजार टंक मुझे देना है। यह कार्य उसने बहुत ही गुप्त रीति से किया। एक समय इस लेख पर श्रेष्ठि- पुत्रों की दृष्टि पड़ी, तब उन्होंने मुनीम से दो हजार टंक की मांगनी की। उसने कहा 'व्यापार के निमित्त थोड़ा द्रव्य मुझे दो तो मैं थोड़े ही समय में तुम्हारा कर्ज चुका दूंगा।' तदनुसार उन्होंने इसको कुछ द्रव्य दिया। जिससे उसने बहुत द्रव्य सम्पादन किया। तब पुनः श्रेष्ठीपुत्रों ने अपना लेना मांगा तो मुनीम ने साक्षी सहित यथार्थ बात कह दी। इस प्रकार श्रेष्ठीपुत्रों के आश्रय से वह पुनः धनवान् हो
गया।
निर्दयत्वमहङ्कारस्तृष्णाकर्कशभाषणम् ।