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श्राद्धविधि प्रकरणम्
उसीसे पारणा किया, अभिनव श्रेष्ठी के घर पंच दिव्य प्रकट हुए, उस समय देवदुंदुभी का शब्द प्रकट हुआ जो जीरण श्रेष्ठी न सुनता, तो अवश्य ही केवलज्ञान भी पा जाता; परन्तु दुंदुभी का स्वर सुनते ही भावना खंडित हो गयी, ऐसा ज्ञानी कहते हैं।
साधु मुनिराज को आहार वहोराने के विषय में श्रीशालिभद्र आदि का और रोगादि पर औषध, भैषज देने के विषय में श्रीवीर भगवंत को औषध देनेवाली तथा जिननाम कर्म बांधनेवाली रेवती का दृष्टान्त जानना । रोगी साधु की शुश्रूषा (सार संभाल करने में बहुत फल है। सिद्धान्त में कहा है कि हे गौतम! जो जीव रुग्णसाधु की सेवा शुश्रूषा करता है, वह मेरे दर्शन (शासन) को मानता है, और जो मेरे दर्शन को मानता है, वह रुग्णसाधु की सेवा शुश्रूषा करता है। कारण कि, अरिहंत के दर्शन में शासन की आज्ञानुसार चलना ही प्रधान है। ऐसा निश्चयपूर्वक जानो, इत्यादि । इस पर कृमिकुष्ठ रोग से पीड़ित साधु की सेवा शुश्रूषा करनेवाले ऋषभदेव के जीव जीवानन्दवैद्य का दृष्टान्त जानना। वैसे ही सुश्रावक को सुपात्र साधुओं को उचित स्थान में उपाश्रय आदि देना चाहिए। कहा है कि
वसही सयणासणभत्तपाणभेसज्जवत्थपत्ताई। जइवि न पज्जत्तधणो, थोवावि हु थोवयं देइ ||१||
जो देइ उवस्सयं जइवराण तवनिअमजोगजुत्ताणं ।
तेणं दिन्नावत्थन्नपाणसयणासणविगप्पा ॥२॥
घर में यथोचित धन न हो, तो भी सुश्रावक को मुनिराज को वसति, शय्या, आसन, आहार, पानी, औषध, वस्त्र, पात्र आदि थोड़े से थोड़ा भी देना चाहिए। जयंती, वंकचूल, कोशा वेश्या, अवंतिसुकुमाल आदि सुपात्रों को उपाश्रय देने से ही संसारसागर पार कर गये। वैसे ही सुश्रावक को साधु की निंदा करनेवाले तथा जिनशासन के प्रत्यनीक लोगों को अपनी सर्वशक्ति से मना करना चाहिए। कहा है कि—सुश्रावक सामर्थ्य होते हुए, भगवान की आज्ञा से प्रतिकूल चलनेवाले लोगों की कदापि उपेक्षा न करे, समयानुसार अनुकूल अथवा प्रतिकूल उपाय से अवश्य शिक्षा के वचन कहे। यहां द्रमक मुनि की निन्दा करनेवाले लोगों को युक्ति से मना करनेवाले अभयकुमार का दृष्टान्त जानना ।
साधु की तरह साध्वियों को भी सुखसंयमयात्रा के प्रश्न आदि करना । उसमें इतनी बात और अधिक जानना कि, साध्वियों का दुराचारी और नास्तिक लोगों से रक्षण करना। अपने घर के समीप चारों ओर से सुरक्षित तथा गुप्त द्वारवाली (जहां एकाएक कोई घुस न सके) वसति देना। अपनी स्त्रियों द्वारा उनकी सेवा कराना, अपनी पुत्रियों को ज्ञानादि गुण के निमित्त उनके पास रखना, अपने कुटुम्ब की पुत्री आदि कोई स्त्री दीक्षा लेने को तैयार हो, तो उसे उन्हींको (साध्वियों को) सौंपना, जो साध्वियाँ अपना कोई आचार भूल जायँ, तो उनको स्मरण कराना, जो साध्वियां अन्याय मार्ग में जाये तो उनको रोकना, जिनका पग असन्मार्ग में पड़ गया हो, तो