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श्राद्धविधि प्रकरणम् प्रश्न-हे भगवंत! बटला(वटाणा), मसूर, तिल, मूंग, उड़द, वाल, कुलथी, चवला, तूवर, काले चने इत्यादि धान्य शाल के समान कोठी में रखें तो उनकी योनि कितने समय तक रहती है?
उत्तर-हे गौतम!जघन्य से अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट से पांच वर्ष तक (योनि रहती है) तदनंतर योनि सूखने पर (वे धान्य) अचित्त होते हैं और बीज अबीज होते हैं।
प्रश्न-हे भगवंत! अलसी, कुसुंभक, कोदों (कोदरा), कांगणी, बंटी, रालक, कोडूसग (कोदों की एक जाति), सन (शण), सरसों, मूले के बीज इत्यादि धान्य शाल के समान रखें तो उनकी योनि कितने समय तक रहती है?
उत्तर-हे गौतम! जघन्य से अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट से सात वर्ष (योनि रहती है।) तदनंतर योनि सूख जाये तब (वे धान्य) अचित्त हो जाते हैं, और बीज हैं वे अबीज हो जाते हैं। इस विषय में पूर्वाचार्योंने इस प्रकार गाथाएं रची हैं, यथा
जवजवजवगोहुमसालिवीहिधण्णाण कुट्ठमा[या]ईसु। खिविआणं उक्कोसं, वरिसतिगं होइ सजिवत्तं ।।१।। तिलमुग्गमसूरकलायमासचवलयकुलत्थतुवरीणं। तह वट्टचणयवल्लाण वरिसपणगं सजीवत्तं ॥२॥ अयसीलट्टाकंगूकोडूसगसणवरहसिद्धत्था।
कुद्दवरालय मूलगबीआणं सत्त वरिसाणि ॥३॥ (इन तीनों गाथाओं का अर्थ ऊपर के प्रश्नोंत्तरों में आ गया है।)
कपास तीसरे वर्ष में अचित्त होता है। श्री कल्पबृहद्भाष्य में कहा है कि, कपास तीसरे वर्ष लेते हैं। अर्थात् कपास तीसरे वर्षका अचित्त हुआ लेना मानते हैं।
आटे का अचित्त, मिश्र इत्यादि प्रकार पूर्वाचार्यों ने इस प्रकार कहा हैं—आटा छाना हुआ न हो तो श्रावण तथा भादवा मास में पांच दिन, आश्विन मास में चार दिन, कार्तिक, मार्गशीर्ष और पौष मास में तीन दिन,माह और फाल्गुण मास में पांच प्रहर, चैत्र तथा वैशाख मास में चार प्रहर और ज्येष्ठ तथा आषाढ मास में तीन प्रहर मिश्र (कुछ सचित्त कुछ अचित्त) होता है तदनंतर अचित्त हो जाता है। छाना हुआ आटा तो दो घड़ी के बाद अचित्त हो जाता है। शंकाः अचित्त भोजन करनेवाले को अचित्त हुआ आटा आदि कितने दिन तक
ग्राह्य है? समाधान सिद्धान्त में इस विषय के सम्बन्ध में कोई दिन का नियम सुना नहीं। परन्तु द्रव्य से धान्य के नये-जूनेपन के ऊपर से, क्षेत्र से सरस-निरस खेत के ऊपर से,काल से वर्षाकाल, शीतकाल तथा उष्णकाल इत्यादि के ऊपर से और भाव से कही हई वस्तु के अमुक-अमुक परिणाम पर से पक्ष, मास इत्यादिक अवधि जहां तक वर्ण, गंध, रसादिक में फेरफार न हो, और इली आदि जीव की उत्पत्ति न हो वहां तक कहना