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श्राद्धविधि प्रकरणम् प्रतिज्ञा पूर्ण न हुई ऐसे दशार्णभद्र राजा ने दीक्षा ग्रहण की। इस विषय में पूर्वाचार्यों की की हुई हाथी के मुख आदि वस्तु की गिनती बतानेवाली गाथाएं हैं। इन्द्र के नाटक का वर्णन : ___ उनका अर्थ यह है—एक हाथी को पांचसो बारह मुख, चार हजार छियान्नवे दांत, बत्तीस हजार सातसो अड़सठ बावड़ियां,दोलाख बासठ हजार एकसो चुम्मालीश कमल, कर्णिका प्रासाद के अंदर आये हुए नाटक की संख्या कमल के ही समान, छब्बीस सो करोड़ इकवीस करोड़ और चुम्मालीश लाख इतनी एक हाथी के कमल दल की संख्या शक्रेन्द्र की जानो। अब चौसठ हजार हाथी के सबके मुख, दांत प्रमुख वस्तु संख्या इकट्ठी कहनी चाहिए। सर्व हाथियों के मुख तीन करोड़ सत्तावीस लाख, अड़सठ हजार। सब के दांतों की संख्या छब्बीस करोड़, इक्कीस लाख, चुम्मालीश हजार। सर्व बावड़ियों की संख्या दो सो करोड़, नौ करोड़, एकहत्तर लाख, बावन हजार सर्व कमलों की संख्या एक हजार करोड़, छःसो करोड़,सतहत्तर करोड़, बहत्तर लाख, सोलह हजार। सर्व पंखुड़ियों की तथा नाटक की संख्या सोलह कोड़ाकोड़ी, सतहत्तर लाख करोड़, बहत्तर हजार करोड़, एक सो साठ करोड़। सर्व नाटक के रूप की संख्या पांचसो कोड़ाकोड़ी, छत्तीस कोड़ाकोड़ी, सत्यासी लाख करोड़, नव हजार करोड़, एक सो करोड़ और बीस करोड़। यह सर्व संख्याएं आवश्यकचूर्णि में कही हैं। प्रत्येक प्रासाद में आठ अग्रमहिषी के साथ इन्द्र भगवान् के गुण गाता है, ऐसा कहा, वहां अग्रमहिषी की संख्या कमल के समान जानना। इंद्राणी की संख्या तो तेरह हजार करोड़, चारसौ इक्कीस करोड़, सतहत्तर लाख, अट्ठाइस हजार इतनी हैं। प्रत्येक नाटक में समान रूप, शृंगार और नाट्योपकरण युक्त एकसो आठ दिव्यकुमार तथा उतनी ही देव-कन्याएं हैं। वाद्यों का वर्णन :
ऐसे ही १ शंख, २ शृंग, ३ शंखिका, ४ पेया, ५ परिपरिका, ६ पणव,७ पडह,८ भंभा,९ होरंभा, १० भेरी, ११ झल्लरी, १२ दुन्दुभी, १३ मुरज, १४ मृदंग, १५ नांदीमृदंग, १६ आलिंग, १७ कुस्तुम्ब, १८ गौमुख, १९ मादल, २० बिपंची, २१ वल्लकी, २२ भ्रामरी, २३ षड्भ्रामरी, २४ परिवादिनी, २५ बब्बीसा, २६ सुघोषा, २७ नंदिघोषा, २८ महती, २९ कच्छपी, ३० चित्रवीणा, ३१ आमोट, ३२ झांझ, ३३ नकुल, ३४ तूणा, ३५ तुंबवीणा, ३६ मुकुंद, ३७ हुडुक्का, ३८ चिच्चिकी, ३९ करटीका, ४० डिंडिम, ४१ किणित, ४२ कडंबा, ४३ दर्दरक, ४४ ददरिका, ४५ कुस्तुंबर, ४६ कलसिका, ४७ तल, ४८ ताल, ४९ कांस्यताल,५० गिरिसिका,५१ मकरिका, ५२ शिशुमारिका,५३ वंश,५४ वाली, ५५ वेणु, ५६ परिली, ५७ बंधूक इत्यादि विविध वाद्यों के बजाने वाले प्रत्येक में एक सो आठ जानो। ३ शंखिका याने तीक्ष्ण स्वरवाला छोटा शंख होता है और शंख का तो गंभीर स्वर होता है। ४ पेया यह बड़ी काहला को कहते हैं। ५ परिपरिका, याने मकड़ी के पड़ से बंधा हुआ एक मुख वाजिंत्र है। ६ पणव, यह पड़ह विशेष अथवा