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श्राद्धविधि प्रकरणम् सकती, तथापि अक्षत दीप इत्यादि से तो नित्य पूजा करनी।जल का एकबिंदु महासमुद्र में डालने से वह जैसे अक्षय हो जाता है, वैसे ही वीतराग में पूजा अर्पण करे तो वह अक्षय हो जाती है। सर्व भव्यजीव इस पूजा रूपी बीज से इस संसाररूपी वन में दुःख न पाकर अत्यंत उदार भोग भोगकर सिद्धि (मोक्ष) पाते हैं।
पूआए मणसंती, मणसंती ए य उत्तमं झाणं। सुहझाणेण य मुक्खो मुक्खे सुक्खं निराबाहं ।।१।। पुष्पाद्यर्चा तदाज्ञा च, तद्र्व्य परिरक्षणं।
उत्सवास्तीर्थयात्रा च, भक्तिः पञ्चविधा जिने ।।२।। पूजा से मन को शांति होती है, मन की शांति से शुभ ध्यान होता है, शुभ ध्यान से मुक्ति प्राप्त होती है और मुक्ति पाने से निराबाध सुख होता है। जिनभक्ति पांच प्रकार की होती है। एक फूल आदि वस्तु से पूजा करना, दूसरी भगवान की आज्ञा पालना, तीसरी देवद्रव्य की अच्छी तरह रक्षा करना, चौथी जिनमंदिर में उत्सव करना, पांचवी तीर्थयात्रा करना। आभोग-अनाभोग द्रव्यस्तव :
द्रव्यस्तव आभोग से और अनाभोग से दो प्रकार का है। कहा है कि भगवान् के गुण का ज्ञाता पुरुष वीतराग पर बहुत भाव रखकर विधि से पूजा करे, उसे आभोग द्रव्यस्तव कहते हैं। इस आभोग द्रव्यपूजा से सकल कर्म का नाश कर सके ऐसे चारित्र का लाभ शीघ्र होता है। अतः सम्यग्दृष्टि जीवों को इस पूजा में अच्छी तरह प्रवृत्त होना चाहिए। पूजा की विधि बराबर न हो, जिन भगवान के गुणों का भी ज्ञान न हो, और केवलमात्र शुभपरिणाम से की हुई पूजा वह अनाभोग द्रव्यपूजा कहलाती है। इस रीति से की हुई यह अनाभोग द्रव्यपूजा भी गुणस्थान का स्थानक होने से गुणकारी ही है, कारण कि, इससे क्रमशः शुभ शुभतर परिणाम होते हैं, और सम्यक्त्व का लाभ होता
असुहक्खएण धणिअं, धन्नाणं आगामेसि भदाणं।
अमुणिअगुणेऽवि नूणं, विसर पीई समुच्छलइ ।।१०।। भावी काल में कल्याण पानेवाले धन्य जीवों को ही 'गुण नहीं जानने पर भी पूजादि में जैसे अरिहंत के बिंब में तोते के जोड़े को बुद्धि उत्पन्न हुई' वैसे ही अशुभ कर्म के क्षय से ही प्रीति उत्पन्न होती है। भारे कर्मी और भवाभिनंदी जीवों को-तो पूजादि विषय में जैसे निश्चय से मृत्यु समीप आने पर रोगी मनुष्य को पथ्य में द्वेष उत्पन्न होता है, वैसे ही द्वेष उत्पन्न होता है। इसलिए तत्त्वज्ञ पुरुष जिनबिंब में अंथवा जिनेंद्रप्रणीत धर्म में अशुभपरिणाम का अभ्यास होने के भय से लेशमात्र द्वेष से भी : दूर रहता है। __ दूसरे के प्रति जिनपूजा का द्वेष करनेवाली कुंतलारानी का दृष्टांत इस प्रकार है