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श्राद्धविधि प्रकरणम्
161 पूर्वभव में तेरी माता थी। इसने भगवान् संमुख दीप पूजा के लिए दीपक करके उसी दीपक से घर के कार्य किये, धूपदान में रहे हुए अंगार से चूल्हा सुलगाया, उस पापकर्म से यह ऊंटनी हुई है। कहा है कि जो मूर्ख मनुष्य भगवान् के निमित्त दीपक तथा धूप करके उसीसे घर के कार्य मोहवश करता है, वह बार-बार तिर्यंच योनि पाता है, इस. प्रकार तुम्हारा दोनों का स्नेह पूर्वभव के संबंध से आया हुआ है, इत्यादि।
इसलिए देवके सन्मुख किये हुए दीपक के प्रकाश में पत्रादिक न पढ़ना,कुछ भी घर का काम न करना, मुद्रा (नाणा) न परखना, देव सन्मुख किये हुए दीपक से अपने लिये दूसरा दीपक भी न सुलगाना, भगवान् के चंदन से अपने कपालादिक में तिलक न करना, भगवान् केजल से हाथ भी न धोना। नीचे पड़ी हुई भगवान् की शेषा (चढ़ाई हुई माला आदि) भी स्वल्प ही ली जाती है। परन्तु वह भी प्रतिमा के ऊपर से उतारकर नहीं ली जा सकती। भगवान् के भेरी, झालर आदि वाजिंत्र भी गुरु अथवा संघ के कार्य के लिए बजाये नहीं जा सकते। यहां किसी-किसी का मत ऐसा है कि, यदि कोई आवश्यक कार्य हो तो देव के वाजिंत्र काम में लेना, परन्तु प्रथम उसके बदले में देवद्रव्य खाते अच्छी भेट (नकरा) देना चाहिए, कहा है कि
मुल्लं विणा जिणाणं, उवगरणं चमरछत्तकलसाई।
जो वावारइ मूढो, नियकज्जे सो हवइ दुहिओ ।।१।। " जो मूढ़पुरुष जिनेश्वर महाराज के चामर, छत्र,कलश आदि उपकरण मूल्य दिये बिना अपने काम में ले, वह दुःखी होता है। नकरा देने के बाद वापरने को लिये हुए वाजिंत्र कदाचित् टूट जाये तो निजद्रव्य से उन्हें ठीक कराके देना चाहिए। गृहकार्य के लिए किया हुआ दीपक दर्शन करने के लिए ही जो जिनेश्वर भगवान् की प्रतिमा के संमुख लाया गया हो तो इतने ही कारण से वह देवदीप नहीं हो सकता। जो पूजा के ही निमित्त भगवान् के सन्मुख रखा हो, तो वह देवदीप होता है। मुख्यतः तो देवदीप के निमित्त कोड़िया (मिट्टी के दीवे) आदि अलग ही रखना, और पूजा के निमित्त दीपक किया हो तो उसके कोड़िये, बत्ती अथवा घी, तैल अपने काम में न लेना। किसी मनुष्य ने पूजा करनेवाले लोगों के हाथ पैर धोने के लिए ही मंदिर में पृथक् जल रखा हो, तो उसजल से हाथ पैर धोने में दोष नहीं। छाबड़ियां, चंगेरी, ओरसिया आदि तथा चंदन, केशर, कपूर, कस्तूरी आदि वस्तु अपनी निश्रा से रखकर ही देवकार्य में वापरना; देव की निश्रा से कभी न रखना। कारण कि देव की निश्रा से न रखी हो तो प्रयोजन पड़ने पर वह घर के कार्य में ली जा सकती है। इसी प्रकार भेरी, झालर आदि वाजिंत्र भी साधारण खाते रखे हो तो वे सर्व धर्मकृत्यों में उपयोग में लिये जा सकते हैं। अपनी निश्रा से रखी हुई तंबू, पड़दा आदि वस्तुएं देवमंदिर में वापरने को रखे हों तो भी उस कारण से वह वस्तु देवद्रव्य नहीं मानी जाती। कारण कि, मन के परिणाम ही १. वर्तमान में यह प्रथा नहीं है।