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श्राद्धविधि प्रकरणम् दिशापरिमाण, १३ स्नान (न्हाना),१४ भक्त (खाना)।
१ सुश्रावक को मुख्यमार्ग से तो सचित्त का सर्वथा त्याग करना चाहिए, वैसा करने की शक्ति न हो तो नाम लेकर अथवा साधारणतः एक, दो इत्यादि सचित्त वस्तु का नियम करना। कहा है कि
सचित्त-द्रव्य-विगई-वाणह-तंबोल-वत्थ-कुसुमेसु। वाहण-सयण-विलेवण-बंभ-दिसि-ण्हाण-भत्तेसु ॥१॥ निरवज्जाहारेणं, निज्जीवेणं परित्तमीसेणं। अत्ताणुसंघणपरा सुसावगा एरिसा हंति ।।२।। सच्चित्तनिमित्तेणं मच्छा गच्छंति सत्तमिं पुढविं।
सच्चित्तो आहारो, न खमो मणसावि पत्थेउं ॥३॥ श्रावक सर्व प्रथम तो निरवद्याहार लेनेवाले हो, ऐसा न हो तो अचित्ताहार ले, ऐसा भी न हो तो प्रत्येक वनस्पति का मिश्राहार ले और आत्मा का श्रेयः करना यही साध्य रक्खे,वे उत्कृष्ट श्रावक गिने जाते हैं। सचित्त आहार के कारण मत्स्य सप्तमनरक चले जाते हैं इससे मन में भी सचित्त आहार की इच्छा नहीं करनी चाहिए। २ सचित्त
और विगई छोड़कर जो कोई शेष वस्तु मुख में डाली जाती है, वह सर्व द्रव्य है। खिचड़ी,रोटी,लड्डू,लापशी, पापड़, चूरमा, दही-भात,खीर इत्यादिक वस्तु बहुत से धान्यादिक से बनी हुई होती हैं, तो भी रसादिक का अन्य परिणाम होने से एक ही मानी जाती हैं। पोली (फलका), जाड़ी रोटी, मांडी, बाटी, घूघरी, ढोकला, थूली, खाकरा, कणेक आदि वस्तु एक धान्य की बनी हुई होती है तो भी प्रत्येक का पृथक् नाम पड़ने से तथा स्वाद में अंतर होने से पृथक्-पृथक् द्रव्य माने जाते हैं। फला, फलिका इत्यादिक में नाम एक ही है, तो भी स्वाद भिन्न है, उससे तथा रसादिक का परिणाम भी अन्य होने से वे बहुत से द्रव्य माने जाते हैं। अथवा अपने अभिप्राय तथा संप्रदाय के ऊपर से किसी अन्य रीति से भी द्रव्य जानना। धातु की शलाका (सलाई) तथा हाथ की अंगुली आदि द्रव्य में नहीं गिने जाते। ३ भक्षण करने के योग्य विगई छ हैं, यथा–१ दूध, दही,३ घी, ४ तैल, ५ गुड तथा ६ घी अथवा तैल में तली हुई वस्तु। ये छः विगई हैं। ४ उपानह जूते अथवा मौजे, खडाऊं (पावडियां) आदि तो जीव की अतिशय विराधना की हेतु होने से श्रावक को तो पहनना योग्य नहीं। ५ ताम्बूल अर्थात् नागरवेल का पान, सुपारी, कत्था, चूना आदि से बनी हुई स्वादिम वस्तु जानना। ६ वस्त्र अर्थात् पंचागादि वेष जानना। (पूजा-सामयिक के उपकण) धोती, पोती तथा रात्रि को पहनने के लिए रखा हुआ वस्त्र आदि वेष में नहीं गिने जाते हैं।७ फूल सिर पर तथा गले में पहनने के और गूंथकर शय्या पर अथवा तकिये पर बिछाने के लायक लेना। फूल का नियम किया हो तो भी भगवान् की पूजा वगैरह में पुष्प चढ़ाने कल्पते हैं। ८ वाहन याने रथ, घोड़ा, बैल, पालकी (वर्तमान में सायकल, मोटर) आदि समझना। ९ शयन याने खाट आदि। १० विलेपन शरीर पर लगाने के लिए तैयार किया