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श्राद्धविधि प्रकरणम् हुआ चूआ, चंदन,जवासादि, कस्तूरी इत्यादिक वस्तु लेना। विलेपन का नियम लिया हो तो भी भगवान् की पूजा आदि कार्य में तिलक, हस्तकंकण, धूप आदि करना ग्राह्य है। ११ ब्रह्मचर्य (चतुर्थ व्रत) दिन में सर्वथा तथा रात्रि में अपनी स्त्री आदि अपेक्षा से जानें। १२ दिशापरिमाण चारों तरफ अथवा अमुक दिशा को इतने गांव तक अथवा इतने योजन तक जाना ऐसी मर्यादा करना। १३ स्नान तेल लगाकर अथवा बिना तैल नहाना। १४ भक्त पकाया हुआ अन्न तथा सुखडी आदि लेना। इस भक्त के नियम में सब मिलकर तीन चार सेर अथवा इससे अधिक अन्न यथासंभव रखना। खरबूजा आदि लेने से तो बहुत सेर हो जाता है। इन चौदह वस्तु का नियम करना। जिसमें दो, तीन अथवा इससे अधिक सचित्त वस्तु का नाम लेकर अथवा सामान्यतः नियम करने को जैसे ऊपर कहा है, वैसे द्रव्यादिक चौदह वस्तु का नियम वस्तु का नाम देकर अथवा साधारणतः यथाशक्ति युक्तिपूर्वक करना। उपरोक्त चौदह नियम यह एक नियम की दिशा बतायी है। इसीके अनुसार अन्य भी शाक, फल,धान्य आदि वस्तु के प्रमाण का तथा आरम्भ का निश्चय आदि कर यथाशक्ति नियम ग्रहण करने चाहिए। पच्चक्खाण लेने की विधि :
इस प्रकार से नियम लेने के अनन्तर यथाशक्ति पच्चक्खाण करना। उसमें नवकारसी, पोरसी आदि कालपच्चक्खाण, जो सूर्योदय के पूर्व किया हो, तो शुद्ध होता है, अन्यथा नहीं। शेष पच्चक्खाण तो सूर्योदय के अनन्तर भी किये जाते हैं। नवकारसी पच्चक्खाण जो सूर्योदय के पूर्व किया हो तो उसके पूर्ण होने पर भी अपनी अपनीकालमर्यादा में पोरसी आदि सबकालपच्चक्खाण किये जा सकते हैं। नवकारसी पच्चक्खाण पूर्व नहीं किया हो, तो सूर्योदय होने के बाद दूसरे कालपच्चक्खाण शुद्ध नहीं होते। जो सूर्योदय के पूर्व नवकारसी पच्चक्खाण बिना पोरिसी आदि पच्चक्खाण किया हो तो, वह पूरा होने के अनंतर दूसरा कालपच्चक्खाण शुद्ध नहीं होता, परन्तु सूर्योदय के पूर्व किये हुए पच्चक्खाण के पूर्ण होने के पूर्व, दूसरा कालपच्चक्खाण ले तो शुद्ध होता है। ऐसा वृद्ध पुरुषों का व्यवहार है। नवकारसी पच्चक्खाण का दो घड़ी का काल है, इतना समय उसे थोड़े आगार ऊपर से ही प्रकट ज्ञात होता है। नवकारसी पच्चक्खाण करने के अनन्तर दो घड़ी उपरान्त भी नवकार का पाठ किये बिना भोजन करेतोपच्चक्खाणका भंग हो जाता है,कारण कि, पच्चक्खाण दंडक में 'नमुक्कारसहिअं' ऐसा कहा है। गंठसी पच्चक्खाण का लाभ :
जिसे प्रमाद छोड़ने की इच्छा हो उसे क्षणमात्र भी पच्चक्खाण बिना रहना उचित नहीं। नवकारसी आदि कालपच्चक्खाण पूरा होने के समय, 'गंठिसहिअं' आदि करना। जिसको बार-बार औषधि लेनी पड़ती हो, ऐसे बालक, रोगी इत्यादिक से भी ग्रंथिसहित पच्चक्खाण सरलता से हो ऐसा है। इससे हमेशा प्रमाद रहितपना रहता है, अतएव इसका विशेष फल है। एक सालवी मद्य, मांस आदि व्यसनों में बहत