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श्राद्धविधि प्रकरणम्
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में चन्द्रनाड़ी और सूर्यनाड़ी शुभ है। शुक्लप्रतिपदा (उजेली पड़वा) से लेकर प्रथम तीन (तीज) तक चन्द्रनाड़ी में वायुतत्त्व रहता है, उसके पश्चात् तीन दिन (चौथ, पंचमी, छट्ठ) तक सूर्यनाड़ी में वायुतत्त्व रहता है, इसी प्रकार आगे चले तो शुभ है, परन्तु इससे उलटा अर्थात् पहिले तीन दिन सूर्य नाड़ी में वायुतत्त्व और पिछले तीन दिन चन्द्रनाड़ी में वायुतत्त्व इस अनुक्रम से चले तो दुःखदायी है।
चन्द्रनाड़ी में वायुतत्त्व चलते हुए जो सूर्योदय होवे तो सूर्यनाड़ी में अस्त होना शुभ है तथा जो सूर्योदय के समय सूर्यनाड़ी चलती हो तो अस्त के समय चन्द्रनाड़ी शुभ है। किसी-किसी के मत में वार के क्रम से सूर्यचन्द्रनाड़ी के उदय के अनुसार फल कहा है। यथा रवि, मंगल, गुरु और शनि इन चार वारों में प्रातःकाल में सूर्यनाड़ी तथा सोम, बुध और शुक्र इन तीन वारो में प्रातःकाल में चन्द्रनाड़ी हो तो वह शुभ है। किसी-किसी के मत में संक्रांति क्रम से सूर्यचन्द्रनाड़ी का उदय कहा है, यथामेषसंक्रांति में प्रातःकाल में सूर्यनाड़ी और वृषभसंक्रांति में चन्द्रनाड़ी शुभ है इत्यादि । किसी-किसी के मत में चन्द्रराशि के परावर्त्तन के क्रम से नाड़ी का विचार है, कहा है कि—सूर्योदय से लेकर प्रत्येक नाड़ी अढ़ाई घड़ी निरन्तर चलती है। रहेंट के घड़े की तरह नाड़ियां भी अनुक्रम से फिरती रहती हैं। छत्तीस गुरुवर्ण (अक्षर) का उच्चारण करने में जितना समय लगता है उतना समय प्राणवायु को एक नाड़ी में से दूसरी नाड़ी में जा लगता है। इस प्रकार पांच तत्त्वों का स्वरूप जानो। अग्नितत्त्व ऊंचा, जलतत्त्व नीचा, वायुतत्त्व आड़ा, पृथ्वीतत्त्व नासिकापुट के अन्दर और आकाशतत्त्व चारों तरफ रहता है। चलती हुई सूर्य और चन्द्रनाड़ी में क्रमशः वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी तथा आकाश ये पांच तत्त्व बहते हैं, यह नित्य का अनुक्रम है। पृथ्वीतत्त्व पचास, जलतत्त्व चालीस, अग्नितत्त्व तीस, वायुतत्त्व बीस और आकाशतत्त्व दस पल बहता है। सौम्य (उत्तम) कार्य में पृथ्वी व जलतत्त्व से फल की उन्नति होती है, क्रूर तथा स्थिर कार्य में अग्नि, वायु और आकाश इन तीन तत्त्वों से शुभफल होता है। आयुष्य, जय, लाभ, धान्य की उत्पत्ति, वृष्टि, पुत्र, संग्राम का प्रश्न, जाना, आना, इतने कार्यों में पृथ्वीतत्त्व और जलतत्त्व शुभ हैं, पर अग्नितत्त्व और वायुतत्त्व अशुभ है। पृथ्वीतत्त्व हो तो कार्य सिद्धि धीरे-धीरे और जलतत्त्व हो तो शीघ्र होती है । पूजा, द्रव्योपार्जन, विवाह, किल्लादि अथवा नदी का उल्लंघन, जाना, आना, जीवन, घर, क्षेत्र इत्यादि का संग्रह, खरीदना, बेचना, वृष्टि, राजादिक की सेवा, कृषि, विष, जय, विद्या, पट्टाभिषेक इत्यादि शुभकार्य में चन्द्रनाड़ी शुभ है। किसी कार्य का प्रश्न अथवा कार्यारम्भ के समय वाम (डावी) नासिका वायु से पूर्ण होवे तथा उसके अन्दर वायु का आवागमन ठीक तरह से चलता हो तो निश्चय कार्यसिद्धि होती है । बन्धन में पड़े हुए, रोगी, अपने अधिकार से भ्रष्ट ऐसे पुरुषों का प्रश्न, संग्राम, शत्रुका मिलाप, आकस्मिक भय, स्नान, पान, भोजन, गयी वस्तु की शोध पुत्र के निमित्त रतिक्रीड़ा, विवाद तथा कोई भी क्रूर कर्म इतनी वस्तुओं में सूर्यनाड़ी शुभ है। किसी जगह ऐसा लिखा है कि,