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श्राद्धविधि प्रकरणम् करने का नियम लेना। ऐसे ही सामग्री (योग) हो तो सद्गुरु को द्वादशावृत वंदन या थोभवंदन करना। योग न हो तो सद्गुरु का नाम ग्रहण करके नित्य वन्दन करना, नित्य वर्षाकाल के चातुर्मास में अथवा 'पंचपर्वी इत्यादिक में अष्टप्रकारी पूजा करना। जीवन पर्यन्त नया आया हुआ अन्न, पक्वान्न अथवा फलादिक भगवान् को अर्पण किये बिना नहीं लेना। नित्य नैवेद्य, सुपारी आदि भगवान् के संमुख रखना। नित्य तीनों चातुर्मास में अथवा वार्षिक (संवत्सरी) तथा दीपोत्सवादिक (दीवाली आदिक) पर अष्ट मंगलिक (अक्षत की बनाकर) रखना। नित्य पर्वतिथि को अथवा वर्ष में कभी कभी खाद्य, स्वाद्य आदि सर्व वस्तु देव तथा गुरु को अर्पणकर शेष अपने उपभोग में लेना। प्रतिमास अथवा प्रतिवर्ष ध्वजा चढ़ाकर विस्तार से स्नात्रमहोत्सवपूर्वक पूजा तथा रात्रि जागरण आदि करना। नित्य अथवा महिने में अथवा वर्ष में कभी चैत्यशाला को प्रमार्जन करना व समारना इत्यादि। प्रतिमास अथवा प्रतिवर्ष मंदिर में अंगलूछणा, दीपक के लिए रूई, दीपक के लिए तैल, चंदन,केशर इत्यादिक देना, तथा पौषधशाला में मुंहपत्ति, नवकारवाली, आसन, चरवला इत्यादि के लिए कुछ वस्त्र, सूतर, कम्बल, ऊन इत्यादि रखना। वर्षाकाल में श्रावक आदि लोगों के बैठने के लिए पाट आदि कराना। प्रतिवर्ष सूत्रादिक से भी संघ की पूजा करना तथा साधर्मिक वात्सल्य करना। प्रतिदिन कायोत्सर्ग करना, तथा तीनसो गाथा की सज्झाय इत्यादि करना। नित्य दिन में नवकारसी आदितथा रात्रि में दिवसचरिम पच्चक्खाण करना, नित्य दो बार प्रतिक्रमण करना इत्यादि नियम श्रावक को प्रथम लेने चाहिए। पश्चात् यथाशक्ति बारह व्रत ग्रहण करना। उसमें सातवें (भोगोपभोगपरिमाण) व्रत में सचित्त, अचित्त व मिश्रवस्तु जो कही है उसे इस प्रकार जानना। जैसेसचित्त-अचित्त का वर्णन :
प्रायः सर्वधान्य, धनिया, जीरा, अजवान, सौंफ, सुवा, राई, खसखस इत्यादि सर्वकण, सर्वफल व पत्र, नमक, खारी, खारा (नमक विशेष) सैंधव, संचल आदि अकृत्रिम क्षार, मट्टी, खडिया, गेरू वैसे ही हरे दांतौन आदि व्यवहार से सचित्त हैं। पानी में भिगोये हुए चने तथा गेहूं आदि धान्य तथा चने, मूंग आदि की दाल] पानी में भिगोये हुए हो तो भी किसी जगह अंकुर की संभावना से वह मिश्र है। प्रथम लवणादिक का हाथ अथवा बाफ दिये बिना किंवा रेती में डाले बिना सेके हए चने. गेहूं, ज्वार इत्यादिक की धानियां, क्षारादिक दिये बिना तिल, चने के छोड़, गेहूं की बालें, पोहे,सेकी हुई फली, पपड़ी आदि, मिर्च,राई आदि का बघार (छौंक) मात्र दिये हुए चिभड़े आदि तथा जिसके अंदर बीज सचित्त है ऐसे सर्व पके हुए फल मिश्र (कुछ सचित्त कुछ अचित्त) हैं। जिस दिन तिलपापड़ी की हो, उस दिन वह मिश्र होती है, अन्न अथवा रोटी आदि में डाली हो तो वह दो घड़ी के उपरांत अचित्त होती है, दक्षिण, मालवा इत्यादि देशों में बहुत सा गुड़ डालने से तत्काल की हुई तिलपापड़ी उसी दिन १. बीज, पंचमी, अष्टमी, ग्यारस, चौदश.