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अन्त में परम दयालु परमात्मा का व स्वर्गस्थ पूज्य गुरुदेव का मैं आभारी हूँ 'जिनकी महती कृपादृष्टि का यह फल है' पुनः पुनः उनके चरण कमलों का अभिवादन करता हूँ और प्रार्थना करता हूँ कि, देवलोक में विराजमान आप हमेशा के लिये मुझे हृदय में रक्खें। ___मुनिराज श्री पूर्णानन्द विजय जी का मैं कृतज्ञ हूँ, जिनकी कृपा से ही यह मेरी भावना के अनुसार कार्य आज सम्पन्न हुआ है, सब कुछ उन्हीं का ही है, मेरा कुछ भी नहीं है।
श्रीमती सरस्वती बहिन जीवराज जी मुंडारा वालों ने अपने प्रथम वर्षी तप के पारणे पर प्रभावना के लिए इस पुस्तक की १००० नकल खरीदकर मेरे उत्साह को बढ़ाया है एतदर्थ धन्यवाद ।
ब्यावर के कृष्णा आर्ट प्रेस के मालिकों को भी धन्यवाद दूंगा जिन्होंने इस कार्य को अपना समझकर बडी शीव्रता से पूरा किया है।
यह हमारा प्रथम प्रयास है, अतः भूलें होना स्वाभाविक है अत: पाठक वर्ग के हम क्षमा प्रार्थी हैं। विद्यावाडी के संरक्षकों का मैं आभारी हूँ जिन्होंने इस पुस्तक का प्रकाशन किया है। वि.सं. २०२६
विनीत : महावीर जयंति
शेषमल राजमलजी सत्तावत विद्यावाडी (राजस्थान)
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