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सत्य दर्शन/११
बल पर है ! कौन-सी चीज है कि जिसका अवलम्बन लेकर मनुष्य मौत के मुँह में भी हँसता हुआ चला जाता है ? किसकी प्रेरणा से मनुष्य अपने प्राणों का बलिदान करने के लिए उद्यत हो जाता है और बलिदान कर देता है। आत्म-बलिदान या प्राणोत्सर्ग की प्रेरणा का जनक कौन है ? आखिर यह प्रेरणा मनुष्य को सत्य और धर्म के द्वारा ही प्राप्त होती है। सत्य और धर्म का प्रकाश अगर हमारे जीवन में जगमगा रहा है, तो हम दूसरे की रक्षा करने के लिए अपने अमूल्य जीवन की भेंट देकर और मौत का आलिंगन करके भी संसार से मुस्कराते हुए विदा होते हैं । यह प्रेरणा और यह प्रकाश सत्य और धर्म के सिवाय और कोई देने वाला नहीं है। सत्य जीवन की समाप्ति के पश्चात् भी प्रेरणा प्रदान करता है। हमारे आचार्यों ने कहा हैसंसार सत्य पर टिका है :
सत्येन धार्यते पृथ्वी, सत्येन तपते रविः ।
सत्येन वाति वायुश्च, सर्व सत्य प्रतिष्ठितम् ॥ कहने को लोग कुछ भी कह देते हैं। कोई कहते हैं कि जगत साँप के फन पर टिका है, और किसी की राय में बैल के सींग पर । मगर यह सब कल्पनाएँ है । इनमें कोई तथ्य नहीं है। तथ्य यह है कि इतना विराट संसार पृथ्वी पर टिका हुआ है। पृथ्वी का अपने-आप में यह कायदा और नियम है कि जब तक वह सत्य पर टिकी हुई है, तब तक सारा संसार उस पर खड़ा हुआ है।
सूर्य समय पर ही उदित और अस्त होता है और संसार की यह अनोखी घड़ी निरन्तर चलती रहती है। इसकी चाल में जरा भी गड़बड़ हो जाए, तो संसार की सारी व्यवस्थाएँ ही बिगड़ जाएँ। मगर प्रकृति का यह सत्य नियम है कि सूर्य का उदय और अस्त ठीक समय पर ही होता है।
इसी प्रकार वह वायु भी केवल सत्य के बल पर ही चल रही है। इसलिए शास्त्रकार कहते हैं कि जीवन की जितनी भी साधनाएँ हैं, वे चाहे प्रकृति की हों या चैतन्य की हों, सब की सब अपने आप में सत्य पर प्रतिष्ठित हैं। इस प्रकार क्या जड़ प्रकृति और चेतन, सभी सत्य-प्रतिष्ठित हैं । चेतन जब तक अपने चैतन्य सत्य की सीमा में चल रहा है तो कोई गड़बड़ नहीं होने पाती। और जड़-प्रकृति भी जब तक अपनी सत्य की धुरी पर चल रही है, सब कुछ व्यवस्थित चलता है। जब प्रकृति में
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