Book Title: Satya Darshan
Author(s): Amarmuni, Vijaymuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 207
________________ १९६ / सत्य दर्शन प्रस्थान करना पड़े, तो रोते-बिलखते नहीं, बल्कि हँसते हुए कर सको। साधक इस जीवन को भी हँसते हुए जीए, अगले जीवन को चले, तो भी हँसते हुए चले, पर्युषण का यह पर्व हम सबको अपना यही संदेश सुना रहा है। हमारे सभी व्रत आत्म-साधना के सुन्दर प्रयास हैं। अन्दर के सुप्त ईश्वरत्व को जगाने की साधना है। मानव शरीर नहीं है, आत्मा है, चैतन्य है, अन्त गुणों का अखण्ड पिण्ड है। लोक-पर्व शरीर के आस-पास घूमते हैं किन्तु लोकोत्तर पर्व आत्मा के मूल केन्द्र तक पहुँचते हैं । शरीर से आत्मा में, और आत्मा में अंतर्हित निज शुद्ध सत्तारूप परमात्मा में पहुँचने का लोकोत्तर संदेश ये व्रत देते हैं। इनका संदेश है, कि साधक कहीं भी रहे, किसी भी स्थिति में रहे, परन्तु अपने को न भूले, अपने अन्दर के शद्ध परमात्व तत्व को न भूले। श्रेष्ठता और संस्कृतिः ऊपर हमने जितना विवेचन किया है, उससे व्रतों के विभिन्न पहलुओं का समझना सहल हो गया है। अब हमारे सामने निष्कर्ष रूप में यह सोचने के लिए प्रश्न रह गया है, कि व्रतों के इन विभिन्न रूपों में कौन-सा व्रत श्रेष्ठ हैं तथा कौन-सा व्रत संस्कृति को संपुष्ट करने में समर्थ है ? गहराई से सोचने पर हम यह पाते हैं कि जिस प्रकार हम जिस घड़े से जल पीते हैं, उसके लिए उसकी बाहर भीतर दोनों तरफ की सफाई एवं शुद्धि आवश्यक है, उसी प्रकार से व्रतों के लिए भी बाह्याचरण एवं आत्मिक शुद्धता दोनों ही आपेक्षित हैं । फिर भी यदि कोई बाह्य साज-श्रृंगार पर अटका रह जाए, तो ज्यादा सम्भव है, इस क्रम में अन्तर की शुद्धि उपेक्षित हो जाए। अतः बाह्य साज-श्रृंगार आदि पर विशेष बल न देकर आंतरिक शुद्धता पर ही प्रधानतः ध्यान देना चाहिए। अन्तर का मानस-सरोवर यदि पवित्र होगा, तो वहीं बाह्य पंक में से भी भीतर की शुद्धता सुन्दर कमल पुष्प के समान खिल पड़ेगी। अतः व्रतों के पालन में बाह्य आचरण पर अपेक्षाकृत अल्प ध्यान देते हुए आतंरिक शुद्धता पर ही विशेष ध्यान देना चाहिए। एक बार महात्मा गाँधी ने व्रतों के विषय में विवेचन करते हुए कहा था-"व्रत दो प्रकार के होते हैं, 'काम्य' और 'नित्य' । काम्य उन्हें कहते हैं, जो किसी विशेष कामना को लेकर किए जाते हैं और नित्य वे हैं, जिनमें कामना का समावेश नहीं होता, वरन् जो भक्ति और प्रेम के कारण आध्यात्मिक प्रेरणा से किए जाते हैं । उक्त दोनों व्रतों में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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