Book Title: Satya Darshan
Author(s): Amarmuni, Vijaymuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

View full book text
Previous | Next

Page 210
________________ सत्य दर्शन/१९९ वासना के उन्माद में बदलते देर नहीं लगती है। समाचार पत्रों में आए दिन सांस्कृतिक लोकपर्यों के समय जिस मद्यपान, जूआ, अश्लील नृत्य-गान और महिलाओं के प्रति अभद्रव्यवहार आदि के समाचार आते हैं, वे इस बात के स्पष्ट साक्षी हैं, कि लोकपर्यों की जन-चेतना किस ओर जा रही है, कहाँ भटक रही है, दिग्भ्रान्त हो रही है । आज सभी देशों के समाज शास्त्री कितने चिन्तित हैं, इस स्थिति पर यह सर्व विदित है। लोकोत्तर पर्व : जन-मन का परिष्कार : लोक-पर्वो की उक्त विषम स्थिति को, लगता है, भारतीय तत्त्व चिंतक मनीषी महर्षियों ने पहले से ही ध्यान में रखा होगा । अतः उन्होंने लोकपर्यों के साथ अध्यात्म-साधन को भी पर्यों का रूप दिया। अध्यात्म-साधना का एक सूक्ष्म, साथ ही दिव्य रूप है । वह व्यक्ति के धूमिल होते, मलिन होते अन्तर्हृदय का परिष्कार है, परिमार्जन है। बाहर की स्वच्छता स्वच्छता नहीं है। बाहर की स्वच्छता के साथ अन्तर्जीवन की स्वच्छता का होना परमावश्यक है। क्या पात्र को बाहर से धो लेना, मांज लेना ही पर्याप्त है ? नहीं पात्र को अन्दर से साफ करना, बाहर की सफाई से अधिक जरूरी है। भगवान ऋषभदेव ने मानव-संस्कृति के उस आदि-काल में, अपने जीवन के संध्या-काल में इसीलिए धर्म साधना का उद्घोष किया था। राजनीति एवं समाजनीति की स्थापना के बाद धर्मनीति की स्थापना करना, व्यक्ति के आंतरिक अभ्युदय के लिए भगवान ऋषभदेव ने बहुत आवश्यक समझा था। यदि ऐसा न होता, तो जनता अपने भोग-विलास के जाल में ही उलझ कर रह जाती। अनियंत्रित भोग अन्ततः विवेक शून्य प्रतिस्पर्धा को जन्म देता है। उसमें से अनन्त घृणा, वैर, विद्वेष एवं विग्रह फूट पड़ता है। फलतः व्यक्ति तो दूषित होता ही है, समाज भी दूषित होता है। व्यक्ति ही तो अन्य-व्यक्तियों से मिलकर समाज का रूप लेता है। अतः समाज की शुद्धि के लिए व्यक्ति का शुद्ध होना अत्यन्त अपेक्षित है। यह शुद्धि अध्यात्म-साधना के द्वारा-अहिंसा, सत्य, दया, करुणा, क्षमा, मैत्री तथा समत्व की आराधना के द्वारा ही हो सकती है। भारतीय चिन्तन का यह सबसे बड़ा महान् आविष्कार है, व्यक्ति के अन्तरतम की विशद्धि के लिए। जब व्यक्ति की उक्त वैयक्तिक विशुद्धि के कार्यक्रम को भारतीय दर्शन ने सामूहिक साधना के रूप में पर्व का रूप दिया, तो वह भारतीय चिन्तन का एक तरह से सर्वोत्तम निषार्ष था । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218