Book Title: Satya Darshan
Author(s): Amarmuni, Vijaymuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 214
________________ सत्य दर्शन / २०३ आवश्यकताओं को अपने पुरुषार्थ से पूरा करना है, पराश्रित रहने वाला व्यक्ति कदापि विकास नहीं कर पाता । अब कर्म-युग का उदय हो रहा है। कर्म के द्वारा ही सभी समस्याओं का हल करना है। इस तरह उन्होंने गृहस्थ-धर्म की प्ररूपणा की, और जब देखा, कि जनता समृद्ध हो गई है। अपनी भौतिक आवश्यकताओं की संपूर्ति वह स्वतः कर रही है, जीवन में सुख, शांति एवं आनन्द की धारा बह रही है, तब उस महापुरुष ने आध्यात्मिक विकास के लिए मुनि जीवन को स्वीकार किया और तप-साधना में संलग्न हो गए। जैसा कि अभी कहा गया है, कि उस युग की जनता खाना जानती थी, न तो कमाना जानती थी, और न अन्य को खिलाना जानती थी। भगवान ऋषभदेव ने उसे कमाना सिखा दिया, परन्तु अभी भी उसने देना नहीं सीखा था । वर्षी-तप की तपसाधना के बाद जब भगवान पारणे के लिए भिक्षा लेने को गृहस्थों के द्वार पर गए, तो उन्हें पता नहीं था, कि इस महापुरुष का किस प्रकार का स्वागत करना चाहिए। इन्हें किस वस्तु की आवश्यकता है? इन्हें क्या देना चाहिए? इस समस्या में उलझी जनता को समाधान नहीं मिल रहा था। श्रेयांसकुमार एक महान विचारशील युवक था । मानव-जाति के इतिहास में वह प्रथम समय था, जब किसी विचारशील युवक के हृदय में दान देने का शुभ-संकल्प जागृत हुआ। श्रेयांसकुमार के मन में दान देने की जो जो भावना जगी, उसका उपदेश उसे किसी से नहीं मिला था, भगवान् ऋषभदेव ने उस समय तक दान का उपदेश ही नहीं दिया था। उसके कोई क्रमागत किसी भी अन्य पुरुष से उसे दान की प्रेरणा नहीं मिली थी। अपने पूर्वगत संस्कारों के कारण से ही श्रेयांस के शांतचित्त में दान देने की यह भाव-लहरी उत्पन्न हुई थी। अतः दान-धर्म का आदि प्रवर्तक अथवा संस्थापक श्रेयांसकुमार ही रहा है। आचार्य जिनसेन ने जो जैन-जगत के तथा जैन-परम्परा के एक महान आचार्य रहे हैं। अपने आदि पुराण में उन्होंने जो वर्णन किया है, वह बड़ा ही रोचक और सुन्दर है। उसने कहा है, कि भगवान ऋषभदेव तो धर्मतीर्थंकर हैं ही वे धर्म के आदि कर्ता हैं, लेकिन दान-धर्म का आविष्कार श्रेयांसकुमार ने स्वयं अपनी स्फूर्ति से ही किया था। अतः श्रेयांसकुमार को दान-तीर्थ की स्थापना करने वाला दान-तीर्थंकर कहना अतिरंजिंत कथन नहीं कहा. जा सकता । उसने भगवान् ऋषभदेव को इक्षुरस का दान देकर मानव-जाति के इतिहास में एक महान कार्य किया था। इक्षुरस के दान का अर्थ है-माधुर्य-दान, श्रृद्धा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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