Book Title: Satya Darshan
Author(s): Amarmuni, Vijaymuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 205
________________ १९४ / सत्य दर्शन खूब जय-जयकार मनाए गए, बड़े धूम-धाम से उसका उत्सव हुआ। किन्तु राजा प्रतिदिन महल के कंगूरों पर से उस जंगल को देखता और पाँच वर्ष की अवधि के समाप्त होते ही आने वाली उस भयंकर स्थिति को सोच-सोच कर काँप उठता था । राजा का खाया-पीया जलकर भस्म हो जाता, • और वह सूख - सूख कर काँटा होने लग गया । अनागत की चिन्ता बड़ी भयानक होती है। एक दिन कोई बूढ़ा दार्शनिक राजा के पास आया और उसने राजा की गम्भीर व्यथा का कारण पूछा। राजा ने दार्शनिक के समक्ष अपनी पीड़ा का भेद खोल कर रख दिया, कि क्या करूँ, पाँच वर्ष बाद मुझे और सेरी रानी को उस सामने के जंगल में जंगली जानवरों का भक्ष्य बन जाना पड़ेगा। बस यही चिन्ता मुझे खाए जा रही हैं। दार्शनिक ने राजा से कहा- “पाँच वर्ष तक तो तेरा अखण्ड सामाज्य है न ? तू जैसा चाहे वैसा कर सकता है न ? ।" राजा ने कहा- "हाँ, इस अवधि में तो मेरा पूर्ण अधिकार है, मेरा आदेश सभी को मान्य होता है। " दार्शनिक ने बताया- "तो फिर अपने अधिकार का उपयोग क्यों नहीं करते ? समस्त जंगल को कटवाकर साफ करवा दो, और वहाँ पर एक नया साम्राज्य स्थापित कर दो, अपने लिए महल बनवा लो, जनता के रहने के लिए आवास बनवाकर अभी से इस जंगल को शहर के रूप में आबाद कर दो। यदि समय पर ऐसा कर दो, तो फिर तुम्हें कोई खतरा नहीं है। क्योंकि विधान और परम्परा के अनुसार जब तुम्हें अवधि समाप्त होने पर जंगल में छोड़ा जायगा, तो हिंस्र पशुओं की गर्जना व आतंक की जगह तुम्हें नागरिकों का मधुर स्वागत मिलेगा, धन व ऐश्वर्य क्रीड़ा करता मिलेगा।" राजा को यह बात जँच गई और तत्काल आदेश देकर जंगल को साफ करवा दिया। वह स्थान सुन्दर-सुन्दर भवनों तथा उद्यान आदि से खूब सुरम्य बना दिया गया और एक भव्य नगर का निर्माण कर दिया गया। अब राजा बहुत प्रसन्न रहने लगा, जब भी वह अपने उस नगर को देखता, तो अत्यन्त पुलकित हो उठता। कालान्तर में पाँच वर्ष की अवधि परिपूर्ण हुई। जहाँ अन्य सम्राट् अवधि समाप्त होने पर रोते-बिलखते रहे थे, वहाँ यह हँस रहा था। विधानानुसार पाँच वर्ष की अवधि समाप्त होने पर राजा अपने ही द्वारा निर्मित इस नये साम्राज्य में, जो कभी भयंकर जंगल था, जाने लगा, तो › Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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