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१०० / सत्य दर्शन
सकता । पक्षी को उड़ाने की कला का विकास उसमें नहीं हुआ है। किन्तु भाग्य से अण्डा सुरक्षित बना रहता है और अपना समय तय कर लेता है, तब अण्डे का खोल टूटता है और उसे तोड़ कर पक्षी बाहर आता है। इस प्रकार पक्षी का पहला जन्म अण्डे के रूप में होता है और दूसरा जन्म खोल तोड़ने के बाद पक्षी के रूप में होता है। पक्षी अपने पहले जन्म में कोई काम नहीं कर सकता- अपने जीवन की ऊँची उड़ान नहीं भर सकता। वह दूसरा जीवन प्राप्त करने के पश्चात् लम्बी और ऊँची उड़ान भरता है ।
इसी प्रकार माता के उदर से प्रसूत होना मनुष्य का प्रथम जन्म है। कुछ पुरातन संस्कार उसकी आत्मा के साथ थे, उनकी बदौलत उसने मनुष्य का चोला प्राप्त कर लिया । मनुष्य का चोला पा लेने के पश्चात् वह राम बनेगा या रावण, उस चोले में शैतान जन्म लेगा या मनुष्य अथवा देवता- यह नहीं कहा जा सकता। उसका वह रूप साधारण है, दोनों के जन्म की संभावनाएँ उसमें निहित हैं। आगे चलकर जब वह विशिष्ट संज्ञा प्राप्त करता है, चिन्तन और विचार के क्षेत्र में आता है, और अपने जीवन का स्वयं निर्माण करता है और अपनी सोई हुई मनुष्यता की वृत्तियों को जगाता है, तब उसका दूसरा जन्म होता है। यहीं मनुष्य का द्वितीय जन्म है ।
जब मनुष्यता जाग उठती है, तो ऊँचे कर्त्तव्यों का महत्त्व सामने आ जाता है, मनुष्य ऊँची उड़ान लेता है। ऐसा 'मनुष्य' जिस किसी भी परिवार, समाज या राष्ट्र में जन्म लेता है, वहीं अपने जीवन के पावन सौरभ का प्रसार करता है और जीवन की महत्त्वपूर्ण ऊँचाइयों को प्राप्त करता है ।
अगर तुम अपने मनुष्य जीवन में मनुष्य के मन को जगा लोगे, अपने भीतर मानवीय वृत्तियों को विकसित कर लोगे और अपने जीवन के सौरभ को संसार में फैलाना शुरू कर दोगे, तब दूसरा जन्म होगा। उस समय तुम मानव द्विज बन सकोगे। यह मनुष्य जीवन का एक महान् सन्देश है ।
जब भगवान् महावीर की आत्मा का पावापुरी में निर्वाण हो रहा था और हजारों-लाखों लोग उनके दर्शन के लिए चले आ रहे थे, तब उन्होंने अपने अन्तिम प्रवचन में एक बड़ा हृदयग्राही, करुणा से परिपूर्ण सन्देश दिया
खुदु ।
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