________________
१५४/ सत्य दर्शन
उपनिषद् में एक कहानी आती है। एक लड़के की यमराज से भेंट हुई। वह स्वयं यमराज के दरवाजे पर पहुँच गया और जब यमराज सामने आ गया, तो लड़का खिलखिला कर हँसा और बोला-'मुझे गोदी में ले लो।'
यमराज ने लड़के को हँसते-मुस्कराते देखा, तो उसकी क्रूरता और निर्दयता न 'जाने कहाँ गायब हो गई ? उसने बालक को हाथों पर उठा लिया। उसकी ओर दुलार की आँखों से देखा और बोला-'वत्स ! तुम्हारा मुँह तो ऐसा चमकता है, जैसे किसी ब्रह्म के जानने वाले ज्ञानी का चमकता हो।' ____तो, बात यह है कि यमराज मिले तो क्या और मृत्यु का दूत मिले तो क्या ? यदि आप रो पड़े हैं, तो संसार भी रुलाएगा ; यदि आपके अन्दर भय आया है, तो संसार भी भयभीत करेगा और आपके रोने में आनन्द मनाएगा । और यदि आपके भीतर शक्ति है, तो यमराज के आगे भी मचल सकते हो और घोर से घोर आपत्तियों में भी मस्त रह सकते हो। आपके अन्दर यदि दृढ़ता है, तो आपको कोई भी शक्ति किसी भी तरफ नहीं ढाल सकती।
यह क्या कि नजर लग गई और अमुक की आँखें ऐसी हैं कि नजर लगा देती हैं। फिर वही बात आप दूसरों से भी कहते हैं और पुरुष को डाकी का और स्त्री को डाकिन का फतवा दे दिया जाता है। __ मैंने पहले पढ़ा था कि एक लड़का अमुक के मोहल्ले में गया और संयोगवशत् उसे बुखार आ गया। बस, लोगों ने निश्चय कर लिया कि उस मुहल्ले में अमुक स्त्री है और वह डाकिन है उसी की इस बालक पर नजर पड़ गई है। उस स्त्री को लोगों ने पहले से ही बदनाम कर रखा था । वे उस स्त्री को पकड़ लाए और बोले-'इस को चूस, तू डाकिन है।
स्त्री ने कहा-'हे ईश्वर, मुझे तो कुछ भी नहीं आता है । मैं तुम्हारे बालक के लिए क्यों अमंगल करूँगी ? मैं कुछ भी तो नहीं जानती।'
मगर उन्होंने उसकी एक भी न सुनी और उसे मार-मारकर भूसा बना दिया। इतना मारा कि घर पहुँचते-पहुँचते वह मर गई। फिर भी उनके अन्दर का वहम नहीं निकला । वे यही समझते रहे कि बच्चे के बुखार का कारण वही स्त्री है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org