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राम एवं अल्लाह :
एक मुसलमान और एक जाट की कहानी स्मरण आ रही है। एक बार दोनों साथ-साथ कहीं जा रहे थे। रास्ते में, बातचीत के सिलसिले में जाट कहने लगा-राम बड़ा और मुसलमान कहने लगा-नहीं, अल्लाह बड़ा ।
सत्य दर्शन /* १५९.
दोनों लड़ते-झगड़ते एक टीले के पास से गुजरे। दोनों ने निश्चय किया - किसका देवता बड़ा है, इस प्रश्न का निपटारा यहीं कर लें। इस टीले से छलाँग मारकर कूदने पर जिसे चोट न लगे और जो सुरक्षित बचा रहे, उसी का देवता बड़ा है। दोनों ने परमेश्वर की परीक्षा करने की यह अचूक कसौटी स्वीकार कर ली।
पहले मुसलमान ने छलाँग मारी और उसका कुछ भी न बिगड़ा। अब जाट की बारी आई। उसके मन में आया- "छलाँग नहीं मारूँगा, तो उसका अल्लाह बड़ा हो जाएगा और मेरा भगवान छोटा हो जाएगा। यह बुरी बात होगी। और यदि छलाँग मारता हूँ, तो मेरा बुरा हाल हो जाएगा। चोट लग जाएगी और हड्डी -पसली टूट जाएगी और मैं झूठा पड़ जाऊँगा।"
आखिर, राम-राम कह कर उसने छलाँग मारी। सोचा, राम-राम तो अच्छा है ही, अल्लाह का नाम भी ले लूँ, तो भी क्या हर्ज है ? यह सोच कर नीचे आते-आते उसने अल्लाह भी कह दिया। जाट को चोट लग गई। अब क्या था, मुसलमान की बन आई । उसने कहा- 'लो तुम्हारा राम झूठा हो गया।'
जाट बोला- 'नहीं, राम-राम कहने से चोट नहीं लगी, अल्लाह की ऐसी की तैसी कहने में, अल्लाह का नाम आ जाने से चोट लगी है।"
खैर, उन दोनों महा- पारखियों को जाने दीजिए और आप अपने ही सम्बन्ध में विचार कीजिए। आखिर, क्या बात है कि वीतराग देव की भी शरण लेते हैं, तीर्थंकरों कभी शरण लेते हैं और जानते हैं कि इन्द्र भी उनके गुलाम हैं और उनके चरणों की धूल लेने को तैयार हैं, फिर भी जब चलते हैं, तो हजार - देवी-देवताओं की मनौती मनाकर चलते हैं, दही और गुड़ खाकर निकलते हैं, काली और भवानी का स्मरण करके कदम रखते हैं, न जाने वापिस सुरक्षित लौटेंगे या नहीं, इस डर से न जाने किस-किस की आराधना करके रवाना होते हैं। जब चल पड़े हैं, तब रास्ते में भी ऐसे डरते-डरते चलते हैं कि कहीं कोई अपशकुन न हो जाए ।
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