Book Title: Satya Darshan
Author(s): Amarmuni, Vijaymuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 177
________________ १६६ / सत्य दर्शन हैं । आज लम्बी-चौड़ी लिखा-पढ़ी होती है, उस पर हस्ताक्षर होते हैं, गवाहों के हस्ताक्षर होते हैं, फिर भी उसका कोई मूल्य नहीं है। यह इतिहास, मानव-जाति की अप्रामाणिकता का इतिहास है। यह उसके पतन का कलुषित इतिहास है । कहाँ हमारी महान् उज्ज्वल परम्पराएँ और कहाँ हमारा वर्तमान। अगर कोई परिस्थिति आपके ऊपर जबर्दस्ती लादी जा रही है, और आप समझते हैं कि उसके पीछे विवेक और विचार नहीं है अथवा वह आपको अनुकूल नहीं मालूम होती, तो आपको उसका विरोध करने का हक है, उसके विरुद्ध खुला संघर्ष करने का अधिकार है। विरोध और संघर्ष करने में अपमान मिले या तिरस्कार मिले, उसकी कोई कीमत नहीं होनी चाहिए। किन्तु जीवन में जो कहा गया है और लिखा गया है, उसकी कीमत होनी चाहिए । मगर किसी बात को कहते या स्वीकार करते समय हम अपनी जिम्मेदारी का विचार नहीं करते, और झटपट हस्ताक्षर बना देते हैं, और फिर उसका पालन भी नहीं करते हैं । इसी कारण एक प्रकार से राजनीति भी भ्रष्ट हो गई है और प्रजा का जीवन भी भ्रष्ट हो गया है । न आज का त्यागी अपनी ऊँचाई पर रहा है, न भोगी ही उस ऊँचाई पर स्थित रहा है। इस प्रकार जहाँ देखो, वहीं घोर पतन के लक्षण दिखाई दे रहे हैं । जीवन का अंग-अंग असत्य की गंदगी से सड़ रहा है। लोग सत्य की बात करते हैं, किन्तु जब उसके आचरण करने का प्रश्न सामने आता है, तो गड़बड़ा जाते हैं। संचाई यह है कि जब तक जीवन में सत्य का प्रवेश न होगा, जीवन पनप नहीं सकेगा। अहिंसा और दूसरे आदर्श आ नहीं सकेंगे। इसी प्रकार सत्य का आश्रय लिए बिना राजनीति भी ठीक दिशा ग्रहण नहीं कर सकेगी। राजनीति में से असत्य निकलेगा, तो राष्ट्रों का कल्याण होगा। और प्रजा के जीवन में से असत्य निकलेगा, तो प्रजा का और समाज का कल्याण होगा। हाँ, आप इस तथ्य को भूल न जाएँ कि समाज और राष्ट्र का निर्माण व्यक्तियों से होता है। व्यक्तियों का समुदाय ही तो समाज है और राष्ट्र है। व्यक्तियों के गुण और अवगुण ही समाज एवं राष्ट्र के गुण और अवगुण कहलाते हैं। व्यक्तियों की निर्बलता ही समाज की निर्बलता है, व्यक्तियों की सचाई ही समाज की सचाई है । अतएव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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