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सत्य दर्शन / १०३ अपने ऊपर हुकूमत करे और शासन करे। इस तरीके से जो काम करेगा, वह परिवार में होगा, तो वहाँ से भी सुन्दर आदमी होकर निकलेगा और यदि समाज, देश या राजा का आदमी है, तो वहाँ से भी सुन्दरता लेकर निकलेगा। यह मनुष्यता का महत्त्वपूर्ण सन्देश है।
इस भावना से काम करने वाले में जीवन का बहुरूपियापन समाप्त हो जाएगा। एक जगह आदमी बड़ा ही नम्र और सुशील रहता है, केवल दबाव के कारण और ज्यों ही दबाव हट जाता है, तो दूसरों के साथ उसका बर्ताव क्रूरतापूर्ण होने लगता है, उसकी नम्रता और सुशीलता केवल दबाव के कारण चल रही थी, किन्तु दबाव के हटते ही वहाँ उच्छंखलता आ जाती है।
कोई दब्बू होता है, कोई जाहिल । दोनों में क्या अन्तर है ? एक आदमी अपनी किसी कमजोरी के कारण दब रहा है, इसका अर्थ है कि उसे कोई जाहिल मिला है। जाहिल से पाला पड़ने पर आदमी में दब्बूपन आ जाता है और जब उससे भी छोटे आदमी के साथ उसका वास्ता पड़ता है, तो वह दब्बू जाहिल बन जाता है।
इस प्रकार दब्बूपन और जाहिलपन, हमारे जीवन के अंग बने हुए हैं। यह जीवन के अंग बने हैं, इसी से हम जीवन में भटक रहे हैं और जीवन में एकरूपता नहीं आने दे रहे हैं । अतएव जिसे जीवन में सहज-भाव से एकरूपता लानी है, वह चाहे देश के इस कोने में रहे या उस कोने में, उसका व्यवहार एकरूप ही होगा। भारत ने एक दिन कहा थायत्र विश्वं भवत्येकनीडम्।
-ऋग्वेद सारा भूमण्डल तेरा देश है और सारा देश एक घोंसला है और हम सब उसमें पक्षी के रूप में बैठे हैं । फिर कौन भूमि है, कि जहाँ हम न जाएँ ? समस्त भूमण्डल मनुष्य का वतन है और वह जहाँ कहीं भी जाए या रहे, एकरूप होकर रहे । उसके लिए कोई पराया न हो। जो इस प्रकार की भावना को अपने जीवन में स्थान देगा, वह अपने जीवन-पुष्प को सौरभमय बनाएगा। गुलाब का फूल टहनी पर है, तब भी महकता है
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