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सत्य दर्शन/१५१ तुकाराम ने शान्त भाव से कहा-"किसी ने दे दिया, तो ले लिया। कुछ न कुछ मिला ही है । यह बहुत मीठा है।'
पत्नी ने क्रोध में आकर गन्ना ले लिया और उनकी पीठ पर दे मारा । गन्ने के तीन टुकड़े हो गए। ___ तीन टुकड़े देख तुकाराम ने कहा-'बँटवारा अच्छा हो गया? नहीं तो हमको तीन टुकड़े करने पड़ते। यह तो अपने आप तीन हिस्से हो गए-एक तुम्हारा, एक मेरा, और एक बच्चे का ।'
यह है समभाव और यही है मन में डुबकी लगाना । जीवन जब अन्दर विकसित होता है, तो बाह्य प्रकृति पर उसका प्रभाव पड़े बिना नहीं रहता। सन्त के जीवन के अन्तरतर में जो लहरें उठती थीं, तो उनकी पत्नी भी आखिर उसी बहाव में बह गई और उन्हीं के विचारों में ढल गई। वह संघर्ष, जो उग्र रूप में चल रहा था, मिठास के रूप में नजर आने लगा।
तो मैं सोचता हूँ कि जो मन, वाणी और आचरण में सच्चा है, उसके जीवन की कला इतनी सुन्दर होगी और वह इतना ऊँचा चढ़ता हुआ मालूम होगा। किन्तु साधना में ५०-६० वर्ष व्यतीत कर देने पर भी, जहाँ छोटी-छोटी बातों में भी छल-कपट और धोखा देने की वृत्ति बनी रहती है और दूसरों की तरक्की देखकर ईर्ष्या होती है और झूठे हथकंड़ों के द्वारा दूसरों को नीचे गिराने का प्रयत्न किया जाता है, तो वहाँ जीवन की सुन्दर मिढ़ास कहाँ है ?
हे साधक ! तू ने अपने जीवन के पचास वर्ष तो बाहरी कड़क के साथ गुजारे, किन्तु अन्दर में वह कड़क नहीं रखी है। तभी तो पचास साल के बाद भी साँप की तरह जहर उगलता है। फुकार मारता है और जीवन में से दुर्गन्ध तथा कड़वास निकलता है।
यह स्थिति है, तो विचार करना पड़ेगा कि आन्तरिक जीवन का मेल नहीं बिठलाया गया है और जब तक वह मेल नहीं बिठलाया जाता, तब तक वह सत्य नहीं आ सकता।
सत्य की उपलब्धि के लिए वहम को त्याग देना आवश्यक है। दुर्भाग्य से श्रावकों में और साधुओं में भी वहम घुसे हुए हैं । साधुओं को एक वहम यह है कि हमने
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