________________
१३० / सत्य दर्शन
मेरा आशय यह है कि जीवन का निर्माण करने के लिए अपने जीवन के छोटे-छोटे नियमों और व्यवहारों को भी सत्यमय बनाने की आवश्यकता है। छोटी बातों में सत्य की उपेक्षा करने से सारा ही जीवन असत्यमय बन जाता है। चाहे कोई गृहस्थ हो अथवा साधु हो, वह जो भी उत्तरदायित्व अपने मस्तक पर ले, उसे सच्चाई के साथ निभाने का प्रयत्न करे। जो ऐसा प्रयत्न करते हैं, वे सत्य के सन्निकट हैं । उनका जीवन स्पृहणीय बनेगा ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org