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१४०/ सत्य दर्शन
के लिए ही यह जघन्य एवं अमानवीय हत्याकाण्ड किया जाता है, मगर हत्याकाण्ड करने वाले स्वयं ही नहीं जानते कि देवी की असलियत क्या है? वह कुछ है भी या नहीं ?
एक दार्शनिक मुझे अपना हाल सुनाने लगे। कहने लगे-"मैं कलकत्ता गया और जब लौटने लगा तो सोचा कि काली के दर्शन तो कर लूँ। मैं काली के मन्दिर गया। काली के मन्दिर का वायुमण्डल देख कर मुझे बड़ी ग्लानि हुई । मैं काली को मत्था टेकने लगा, तो पूजारी बोला-'तिलक तो लगा लीजिए। मैंने सोचा-क्या हर्ज है। और मैंने हाँ कह दी। पुजारी खून से ऊँगली भर कर तिलक करने लगा। यह देख मेरा जी मिचलाने लगा, के होने को हुई । मैंने पुजारी को तिलक लगाने से रोक दिया। उसने कहा-काली भैया नाराज हो जाएगी। मैंने उत्तर दिया-मुझे मरना मंजूर है, पर रक्त का तिलक लगाना मंजूर नहीं है।"
इस तरह हजारों आदमी वहाँ जाते हैं और उनके ललाट पर निरीह पशुओं के रक्त का तिलक लगाया जाता है। पर इस गलत रूप को नष्ट करने के लिए कोई प्रयत्न नहीं हो रहा है।
अभी-अभी समाचार पत्रों में पढ़ा है कि आसाम में जो भूकंप आया, उससे कई नदियाँ सूख गईं और कई ने अपना रास्ता बदल लिया। फिर बाढ़ आ गई। इससे लोगों ने समझ लिया कि मैया नाराज हो गई है। उन्होंने मैया को खुश करने के लिए आसपास के कुत्तों को पकड़ा और नदी में फेंक दिया और समझ लिया कि कुत्तों की बलि देने से देवी मैया प्रसन्न हो जाएगी।
इस प्रकार हमारे देश में लाखों-करोड़ों आदमी अंध-विश्वास के शिकार हो रहे हैं । हिन्दू बलि चढ़ाते हैं और मुसलमान गाय की कुर्बानी करते हैं । माता-बहिनों में अंध-विश्वास की कोई सीमा ही नहीं है । कहना चाहिए कि अधिकांश देवी-देवता इन्हीं के अंध-विश्वास के सहारे पनप रहे हैं । अगर उनके हृदय से अंध-विश्वास निकल जाए, तो बहुत से देवी-देवताओं के सिंहासन आज ही हिल जाएँ। जिस दिन जैन-दर्शन का कर्म-सिद्धान्त उनके हृदय में बैठ जाएगा और वे समझ जाएँगे कि
'सुखस्य दुःखस्य न कोsपि दाता, परो ददातीति विमुञ्च शेमुषीम् ।'
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