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सत्य दर्शन/११५
आप जानते होंगे कि सात प्रकार के भयों में इहलोक-भय और परलोक-भय भी बतलाया गया है। जैनधर्म न इहलोक के भय को स्थान देना चाहता है, न परलोक के भय को। एक आचार्य ने कहा है कि जहाँ भय रहेगा, वहाँ समयग्दृष्टि भी धुंधली रहेगी। इहलोक-भय और परलोक-भय भी जीवन को धुंधला बनाते हैं । अतएव हम न इहलोक के भय से और न परलोक के भय से अपने जीवन की यात्रा तय करेंगे। हम जीवन-यात्रा के मार्ग पर निर्भय भाव से, सहज भाव से चलेंगे।
यों करेंगे तो नरक-निगोद में जाएँगे और पशुयोनि में जन्म लेना पड़ेगा, इस प्रकार का भय ही परलोक का भय है। यह भी हमारे लिए त्याज्य बतलाया गया है। हमारी यात्रा परलोक के भय से नहीं होनी चाहिए । एक दार्शनिक कहानी हैस्वर्ग-लोभ नरक का भय :
एक बुढ़िया दार्शनिक विचारों की थी। उसके एक हाथ में पानी का घड़ा था और दूसरे हाथ में जलती हुई मशाल थी। वह इसी प्रकार नाटकीय ढंग करके गलियों में से निकलती । कोई पूछता-यह दोनों चीजें किस लिए ले रखी हैं ? तो वह उत्तर देती-पानी का घड़ा नरक की आग बुझाने के लिए ले रखा है और यह मशाल स्वर्ग को, बहिश्त को आग लगाने के लिए ले रखी है।
बुढ़िया का अद्भुत उत्तर सुनकर लोगों को आश्चर्य हुआ। उन्होंने पूछा-इन दोनों बातों से आपका क्या अभिप्राय है ?
बुढ़िया बोली-संसार में जितने भी साधक हैं, किसी के सिर पर नरक का भय सवार है और किसी के दिमाग में स्वर्ग की रंगीली कल्पनाएँ नाच रही हैं। कोई अपने आप में जीवन निर्माण करते को तैयार नहीं हैं। एक नरक की विभीषिका दिखलाता है। उससे संसार भयभीत हो रहा है और लड़खड़ाता हुआ चल रहा है। लोग भय की डरावनी परछाईं में अपनी साधना कर रहे हैं। वे नरक से बचने के लिये साधना कर रहे हैं, अपने लिए नहीं कर रहे हैं। इसके विपरीत, कई साधक स्वर्ग के रंगीन जीवन का स्वप्न देख रहे हैं और सैकड़ों-हजारों के ऊपर वह रंग चढ़ा हुआ है।
आपको मालूम होगा कि लोग स्वर्ग की बातें करते हैं। कोई पूछता है कि अमुक काम करेंगे, तो क्या होगा? उत्तरदाता कहता है-इसका यह फल होगा और यह काम करोगे, तो देवलोक में जाओगे।
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