________________
११६ / सत्य दर्शन
लोगों ने इस प्रकार देवलोक को नापना शुरू कर दिया है। उनमें जीवन के प्रति कोई वफादारी नहीं है। अतएव वह दार्शनिक बुढ़िया कहती है-संसार के मन में नरक का डर है, तो मैं उसे भी मिटा देना चाहती हूँ और स्वर्ग के लालच को भी मिटा देना चाहती हूँ। मैं मनुष्य के मन में यह भाव उत्पन्न करना चाहती हूँ कि सत्य, सत्य के लिए हैं; जीवन, जीवन के लिए है और आत्मा, आत्मा के लिए है ।
तो भाई, मैं तो उस बुढ़िया से सहमत हूँ, चाहे हमारे साथी सहमत न हों। जो सहमत नहीं है, उनसे मैं पूछता हूँ कि आप पाप से क्यों नहीं डरते ? पाप के फल से क्यों डरते हैं ? जो पाप है, अपने-आप में हिंसा है, उससे तो आप डरते नहीं और उस के द्वारा मिलने वाली नरकयोनि या पशुयोनि से क्यों डरते हैं ?
दुनिया में ऐसे भी दार्शनिक मौजूद हैं, जो कहते हैं कि दुनियाभर के पाप करो, सिर्फ प्रभु का नाम ले लो, तो बस छुटकारा मिल जाएगा। मैं एक जगह ठहरा था और पास ही मस्जिद थी। रात्रि में मुहम्मद साहब की जयन्ती मनाई जा रही थी । वहाँ मुहम्मद साहब के लिए एक नज्म पढ़ी गई । उसका आशय यह था
1
"हे मुहम्मद ! मैं तेरे भरोसे बेफिक्र हूँ। मुझे कोई चिन्ता नहीं है। जो कुछ भी भला-बुरा कर रहा हूँ, तेरे पीछे कर रहा हूँ, क्योंकि तू खुदा के पास है और जो खुदा को करना होगा, वह तुझको पूछे बिना नहीं करेगा। तू हमारा प्रतिनिधि है और जब खुदा पूछे, तो कह देना - माफ कर दे, क्योंकि ये तेरे प्रति ईमान लाए हुए हैं।"
यह नज्म सुनते ही लोगों ने तालियों की गड़गड़ाहट की और दुबारा फिर वह नज्म सुनाई गई। यह सब सुन कर मैंने अपने मन में सोचा - ऐसे धर्म भी हैं, जो जनता को ऐसा चिन्तन दे रहे हैं ।
किसी ने मुहम्मद को खुदा के पास बैठा रखा है, तो किसी ने ईसा को अप प्रतिनिधि नियुक्त करके ईश्वर की बगल में जमा दिया है। उन्हें दुनिया भर के पापों को क्षमा करा देने का ठेकेदार बना दिया है। ये पाप किए जाएँगे और वे क्षमा कराते जाएँगे । जब यह बात है, तो जीवन की बुराइयों से कौन लड़ेगा ? जब इतना सीधा-सादा नुसखा मिल गया है, तो जीवन से जूझने और अपना खून बहाते हुए चलने की मुसीबत कौन झेलना चाहेगा? पापों और गुनाहों से डरने की आवश्यकता नहीं है, आवश्यकता है सिर्फ इस बात की कि उस ठेकेदार के प्रति ईमानदार रहो,
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org