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१२६ / सत्य दर्शन जैन-समाज की गिनती करते समय उनको सम्मिलित करने का तुम्हें क्या अधिकार है? आपके सामने यह एक मूलभूत प्रश्न है और आपको इस पर विचार करना है। मैं समझता हूँ कि इस रूप में एक बहुत बड़े असत्य का सेवन किया जा रहा है।
___ जो लोग अपने समाज के लिए कुछ नहीं कर सकते, समाज के लिए कोई चिन्तन भी नहीं कर पाते और फिर भी समाज के ठेकेदार बनते हैं, समाज के नायक होने का गौरव अनुभव करते हैं, वे निःसन्देह अपने जीवन में असत्य को आश्रय दे रहे
__ मैंने देखा है कि आप में से कई भाइयों को धर्म की प्रेरणा होती है। वे साधुओं के सामने भी विचार करते हैं, तो कहते हैं कि ग्रामों में प्रचार किया जाए, अजैनों को जैन बनाया जाए और इस बारे में वे अपनी आवाज बुलन्द भी करते हैं । लेकिन मैं सोचता हूँ कि हम दूसरों को तो जैन बनाने की बातें करते हैं, किन्तु हजारों वर्षों से जो जैन बने हुए हैं और जैन-समाज के अभिन्न अंग के रूप में रह रहे हैं, उन्हें कितना संभाल रहे हैं आप? भाई, पहले उन्हें तो संभाल लो, फिर नवीन जैन बनाने का अधिकार तुम्हें प्राप्त होगा। आखिर, उनके लिए भी कुछ करोगे या नहीं ? जब उनके लिए ही आप कुछ नहीं कर सकते और उनका उत्तरदायित्व पूरा नहीं कर सकते, तो नवीन सदस्यों. को अपने अन्दर मिलाने का आपको कोई अधिकार नहीं मिल सकता । पहले अपने आसपास के आदमियों की व्यवस्था करो और फिर दूर वालों का उत्तरदायित्व ओढ़ने का विचार करो। उनके सम्बन्ध में कुछ सोचा नहीं और दूसरों की जवाबदारी लेने चले हो, तो वही कहावत चरितार्थ होती है कि 'घर में खाने को मुट्ठी-भर चना नहीं और दुनिया भर को निमन्त्रण देने चले हो। जो आदमी अपना भी पेट नहीं भर सकता, वह दुनिया को प्रीतिभोज देने चलेगा, तो क्या कर पाएगा? वह कुछ भी नहीं कर पाएगा। धर्म और सम्प्रदायः
जैन समाज और जैन धर्म, ये दो तत्त्व हैं। अगर आप जैन-समाज का विस्तार करना चाहते हैं, तो उसके लिए आपके सहयोग की आवश्यकता है। जैन-समाज का विस्तार करना कोई कठिन बात नहीं है। आज भी हजारों जैन बन सकते हैं, किन्तु उनको संभालने के लिए छाती भी तो चाहिए। वह छाती नहीं है, उत्तरदायित्व का निर्वाह करने का साहस नहीं है, तो कोरी बातें करने से काम नहीं चलेगा। ऐसा करके आप समाज का विस्तार करने के बदले अपने जीवन में असत्य का ही विस्तार करेंगे।
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