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४६ / सत्य दर्शन
इस प्रकार भगवान् महावीर का मार्ग एक परम सत्य का उपदेश देने को आया है। आखिरकार शास्त्र की, भगवान् की या किसी भी व्यक्ति की ऊँचाई को मालूम करनेके लिए तुझे अपने मन को ऊँचा बनाना पड़ेगा, संकल्प को पवित्र बनाना होगा, तभी सत्य की उपलब्धि होगी। अगर सत्य को ग्रहण करने की तैयारी नहीं है, मिथ्यात्व
और अंधकार में फँसा है, तो साक्षात् भगवान को पा जाएगा, तो उनको भी भगवान् नहीं मानेगा। जिसकी बुद्धि शैतान की है, उसे भगवान् भी शैतान के रूप में ही नजर आएँगे।
तात्पर्य यह है कि हम बोलचाल की भाषा में जिसे सत्य कहते हैं, सिद्धान्त की भाषा में वह कभी असत्य भी हो जाता है, और कभी-कभी बोलचाल का असत्य भी सत्य बन जाता है। अतएव सत्य और असत्य की दृष्टि ही प्रधान वस्तु है। जिसे सत्य की दृष्टि प्राप्त है, वह वास्तव में सत्य का आराधक है। सत्य की दृष्टि कहो या मन का सत्य कहो, एक ही बात है। इस मन के सत्य के अभाव में वाणी का सत्य मूल्यहीन ही नहीं, वरन् कभी-कभी धूर्तता का चिन्ह भी बन जाता है। अतएव जिसे सत्य भगवान् की आराधना करनी है, उसे अपने मन को सत्यमय बनाना होगा, सत्य के पीछे विवेक को जागृत करना होगा।
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