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सत्य, सत्य के लिए !
सत्या हमारे जीवन में उतना ही आवश्यक है, जितना कि अहिंसा, अस्तेय, ब्रहमचर्य और अपरिग्रह । आत्मा के जो अनन्त - अनन्त गुण हैं और जैसे वे हमारे जीवन को परम पवित्र बनाते हैं, उनमें से एक को भी छोड़ देने से जीवन की पवित्रता पूर्ण नहीं होती, उसी प्रकार सत्य भी हमारे जीवन का महत्वपूर्ण अंग है, हमारी साधना का मुख्य भाग है। उसको छोड़कर हम साधना के जीवन को प्राप्त नहीं कर सकते । इसी कारण आपके सामने सत्य की विवेचना की जा रही है। यह बतलाया जा चुका है कि जहाँ ज्ञान, विवेक और विचार नहीं, वहाँ सत्य की भूमिका भी नहीं मिल सकती।
जो व्यक्ति स्वयं अंधकार में है और जिसे पता नहीं कि मैंने सत्य क्यों बोला? सत्य बोला तो इससे जीवन का क्या लाभ है ? असत्य बोलता हूँ, तो क्या हानि होती है ? ऐसा व्यक्ति यदि किसी के दबाव से सत्य भी बोल रहा है, सोचता है कि असत्य बोलूँगा, तो पिता या पुत्र नाराज हो जाएँगे, राजा दण्ड देगा अथवा समाज में बदनाम हो जाऊँगा और ऐसा सोचकर सत्य बोलता है, तो भगवान् महावीर का कथन है कि उसका सत्य चारित्र का सत्य नहीं है। वह सत्य विवेक या ज्ञान का सत्य नहीं बना है ।
सत्य के पीछे भय, स्वार्थ, लोभ और लालच का क्या काम है ? सत्य की उपासना के पुरस्कार-स्वरूप अगर संसार भर की आपदाएँ सिर पर आ पड़ती है, तब भी सत्य का ही आश्रय लो ! सत्य को ही अपनी उपासना का केन्द्र-बिन्दु बनाए रहो और सत्य को ही आमन्त्रण दो । प्रत्येक परिस्थिति में सत्य ही तुम्हारा लक्ष्य होना चाहिए। और संसार भर का वैभव मिले, तब भी तुम असत्य को निमन्त्रण मत दो, असत्य की कामना भी मत करो। भीषण से भीषण संकट के समय भी जो सत्य के पथ से विचलित नहीं होता और लेशमात्र भी असत्य को आश्रय नहीं देता, निश्चित समझो कि वह महान् भाग्यशाली है, उसकी अन्तस्तल की दिव्य शक्तियाँ उदित और जागृत हो रही हैं और वह समस्त संकटों को हँसते-हँसते पार कर लेगा । सत्य का असीम और अतर्क्य बल उसका रक्षण करेगा, उसे महान् बना देगा। यह जीवन की महान् कला है। जीवन की कला में सत्य, सत्य के लिए बोला जाता है और अहिंसा का अहिंसा के लिए ही आचरण किया जाता है।
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